ईएमआई भरते-भरते बढ़ गया है बीएमआई।
शहरी इस जीवन की क्या-क्या कीमत चुकाई।
35 की उम्र में 55 का दिखता हूं।
देख पुरानी तस्वीरें बचपन को याद करता हूं।
न जाने ये बीमारियां शरीर में कहां से आई।
नाश्ते और डीनर में अब खाते हैं दवाई।
12 घंटे की है नौकरी,सोचता हूं तो क्या इसलिए की थी इतनी पढ़ाई?
काम बढ़ रहा लेकिन नहीं बढ़ रही है कमाई।
ईएमआई भरते-भरते बढ़ गया है बीएमआई।
शहरी इस जीवन की न जाने क्या-क्या कीमत चुकाई।
न धूप है न शाम है बस काम ही काम है।
सबको लगता है हमारे काम में बहुत आराम है।
वाइफ को चाहिए नए जमाने की लाइफ।
इसलिए शॉपिंग साइट पर क्रेडिट कार्ड होता है स्वाइप।
पड़ोसी ने खरीद ली बड़ी कार।
अब तो अपनी नई भी हो गई बेकार।
कैसे अब मैं नई खरीद लूं भाई।
अभी तो बच्चों के स्कूल फीस भी किस्तों में चुकाई।
जितने बड़े घर में भैंसों को हैं सानी लगाई।
उतने बड़े मकां की अब भरते हैं ईएमआई।
जैसे हो जापा वैसे बढ़ रहा है मोटापा।
जिंदगी में इससे बढ़ा है बहुत सियापा।
पापा की कमाई पर खूब मौज उड़ाई।
अपनी कमाई पर मौज से उड़ जाती है चेहरे की हवाई।
ईएमआई भरते-भरते बढ़ गया है बीएमआई।
शहरी इस जीवन की क्या-क्या कीमत नहीं चुकाई।
कहते बड़े बुजुर्ग, संभल कर चला करों।
थोड़ी सी बचत भविष्य के लिए करा करों।
परेशानी में ये ही बचत सबके काम है आई।
बुढ़ापे में इसी के सहारे जिंदगी चलाई।
जिंदगी की कहानी निहाल ने अपने शब्दों से बताई।
ईएमआई भरते-भरते बढ़ गया है बीएमआई।
शहरी इस जीवन की क्या-क्या कीमत नहीं चुकाई।
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