आज का दिन दिल्ली भाजपा अध्यक्ष सतीश उपाध्याय
के लिए चैन की सांस लेने का है। अभी आपकों समझ नहीं आया होगा। लेकिन मैं आपको
समझाने की कोशिश करता हू। समझ आए तो नीचे प्रतिक्रिया बॉक्स में कमैंट और शेयर के
जरिए अपनी उपस्थिति दर्ज कराएं।
आईए अब में आपको समझाता हूं कि आज से उपाध्याय
क्यों चैन की सांस ले सकते है। और यह चैन की सांस 10 अशोका रोड़ से होते हुए 14
पंडित मार्ग तक पहुंच रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले तीन-चार माह से दिल्ली की
राजनीति में सक्रिय हुए विजय गोयल अब केन्द्र में आज राज्य मंत्री बन गए है। विजय
गोयल की सक्रियता से न केवल प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी के पहिए ढीले हो गए थे बल्कि
पूरा डी4 चिंता में पड़ गया था। आए दिन विजय गोयल की गतिविधियों को देख दिल्ली
भाजपा सत्ता रूढ केजरीवाल से जितनी डरती नहीं थी, जितना
डर अपने ही भाजपा सांसद विजय गोयल से भाजपा को लग रहा था। प्रदेश अध्यक्ष और डी-4
को चिंता थी,अगर विजय गोयल प्रदेश अध्यक्ष बन गए तो
उनका क्या होगा। जिसकी वजह डी4 विजय गोयल को गरियाने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे।
खैर अब तो विजय गोयल केन्द्र की राजनीति में पहुंच गए हैं तो डी-4 की मुश्किलें कम
हो गई है।
लेकिन मुश्किलें डी-4 की कम हुई है भाजपा की
नहीं। दरअसल पिछले दो से तीन सालों में कांग्रेस मुक्त भारत के नारे ने खूब जोर पकड़ा। जिसकी शुरूआत दिल्ली से दिखाई दी। वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव हुए और 15
साल से सत्ता में बैठी कांग्रेस के केवल 8 विधायक जीतकर आए। भाजपा 32 सीटों के साथ
सबसे बड़ी पार्टी बन गई लेकिन 28 सीटें जीतकर उस समय नौसिखिया कही जाने वाली आम
आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल ने सरकार बना ली। खैर उसके बाद जो हुआ वह सबकों
पता है। कांग्रेस की आठ सीटें देखकर कांग्रेस मुक्त भारत के नारे ने और जोर पकड़ा
तो वर्ष 2014 के आम चुनाव में नरेन्द्र मोदी ने लोगों के दिलों पर जादू करके न
केवल पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई बल्कि पिछले कई दशकों के रिकार्ड को भी तोड़
दिया। जिसके बाद भाजपाई कांग्रेस मुक्त भारत के नारे को और जोर से बोलने लगे। इस
नारे को बोलते समय भाजपाई अब कमर से नीचें का भी जोर लगाते थे। खैर उसी कांग्रेस
मुक्त नारे के बीच दिल्ली से भाजपा मुक्त दिल्ली की आवाज आई। हुआ यूं कि वर्ष 2015 के
विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने न केवल कांग्रेस मुक्त दिल्ली की बल्कि 67
सीटें जीतकर और तीन सीटें भाजपा को दान में देकर भाजपा मुक्त दिल्ली के अघोषित
अभियान की शुरूआत कर दी। जिसका नतीजा वर्ष 2016 के मई माह में हुए 13 सीटों के निगम
उप चुनाव में दिखाई दिया। विधानसभा में तीन सीटें केजरीवाल से दान में लेकर आई
भाजपा फिर तीन सीटें लेने में कामयाब रही। और जिस दिल्ली से कांग्रेस मुक्त भारत
के अभियान की शुरूआत हुई उसी दिल्ली से भाजपा मुक्त दिल्ली की शुरूआत हो गई। जिसकी
प्रमुख वजह केन्द्रीय भाजपा आलाकमान रहा। और आगे भी ऐसा चलता रहा तो वह दिन दूर
नहीं होगा कि दिल्ली मुक्त भाजपा हो जाए। क्योंकि दिल्ली में भाजपा की राजनीति
खत्म हो रही है। एक तो दिल्ली में दो सांसद ऐसे हैं जो दिल्ली से जबरदस्ती सांसद
बनें हुए है। जिसमें पहले रामराज (उदितराज) (जी हां उदित राज नहीं रामराज, यह
वह जो कभी राम का विरोध करते हुए अपने नाम के आगे से राम शब्द को हटा लिया था और उदित लगा
दिया था) (एक वरिष्ठ पत्रकार के बातचीत के आधार पर) दूसरे सांसद जो नाचने गाने के
लिए जाने जाते है। लोकसभा चुनाव जीते तो उन्होंने साफ कार्यकर्ताओं से कह दिया कुछ
भी हो जाए वह आगे से दिल्ली से लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेगे। खैर बहुत ज्ञान हो गया। अब असली बात यह है
दिल्ली भाजपा का क्या होगा। तो मैं बेजानदारू वाले की तरह कह सकता हूं कि निगम के
फरवरी में होने वाली चुनाव में भाजपा कमाल करेगी, और
तीनों निगम में एक-एक-एक सीट कर अपने तीन के आंकड़े को दोहराएगी। इसकी प्रमुख वजह
सबसे पहले प्रदेश ईकाई होगी और दूसरी राष्ट्रीय ईकाई। हालांकि माना जा रहा है कि राष्ट्रीय ईकाई के
लिए यह लड्डू बांटने का अवसर होगा। क्योंकि सूत्र बताते है कि केन्द्रीय आलाकमान
दिल्ली भाजपा ईकाई से विधानसभा चुनाव के नतीजों को लेकर खुश नहीं है। जिसमें
प्रमुख वजह दिल्ली की गुटबाजी थी। अगर दिल्ली भाजपा खत्म होती है तो केन्द्रीय भाजपा के लिए यह खुशी की बात होगी।
आगे की बताता हू। दरअसल प्रदेश अध्यक्ष को
बदलने को लेकर काफी दिनों से चर्चा चल रही है । डेढ साल से अब बदला अब बदला, लेकिन
अभी तक नहीं बदला वाला हाल है। जिसका असर यह है कि जिलों के अध्यक्ष से लेकर मंडल
का कोई कार्यकर्ता प्रदेश आलाकमान की सुनने को राजी नहीं है। जिसकी प्रमुख वजह
भाजपा का आधार घट रहा है। पहले अगर उपाध्याय को दोबारा के कार्यकाल के लिए घोषित
कर दिया होता तो बात इतनी न बिगडती। लेकिन जमीनी हकीकत की मानें तो भाजपा का हर
कार्यकर्ता और नेता प्रदेश अध्यक्ष बदलने की मांग कर रहा है। बस यह है कि वह अपनी
बात कह नहीं पा रहा है। मुझे खुद दिन में 10-20 फोन कॉल आते हैं जिसमें कार्यकर्ता
बदलने की बात पूछते है। इसलिए अब रायता इतना फैल चुका है कि बिना बदले बात नहीं
बनेगी।
नोट- यह व्यक्तिगत विचार है, इसका किसी संस्थान या व्यक्ति से कोई संबध नहीं है...
बहुत अच्छा िलखा है, शुभकामना, आशा करता हूं िक आगे भी एेसा कुछ पढ़ने को िमलता रहेगा।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा निहाल लिखते रहो, इसी तरह निरंतर
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