Wednesday, March 6, 2013

यकीन नहीं होता श्रीकांत जी जोशी नहीं हैं


निहाल सिंह ।
मैं आज उस विषय पर लिख रहा हूं जिसके स्तर तक पहुंचने के लिए शायद मेरा पूरा जीवन लग जाये। फिर भी साहस कर रहा हूं लेकिन मेरे हाथ नहीं चल पा रहे हैं। मनः स्थिति यह है कि आखिर उस चरित्र को कहां से, किन शब्दों में और कैसे बयां करुं। लगभग छः माह पहले उन्होंने मुझे हिन्दुस्थान समाचार के माध्यम से अपने साथ काम करने का एक अवसर प्रदान किया। मेरे लिए यह पल सचमुच अविस्मरणीय व मुझे गौरवान्वित महसूस करवाने वाला था। यहां से मेरे जीवन में एक और नये पड़ाव की शुरुआत हुई और मैं इसमें आगे बड़ता चला गया। इस बीच बहुत कुछ घटा जिसे मैं आगे आप के साथ बाटूंगा लेकिन एक दिन अचानक तड़के-तड़के जब मेरी नींद पूरी तरह से खुली भी नहीं थी, एक खबर ने मुझे झकझोर कर रख दिया। मुझे यकीन नही हो पा रहा था कि मा. श्रीकांत जोशी जी हमें छोड़ कर जा चुके हैं।

मुझे याद है वह मंगलवार का दिन था। ठीक एक दिन पहले मैं अपने एक बेहद करीबी व वरिष्ठ व्यक्ति से मिलने दिल्ली स्थित पटेल नगर गया था। रात्रि में हुई हम दोनों की चर्चा में उस महान आत्मा का भी जिक्र आया। मुझे उस पल कतई  भी इस बात का एहसास नहीं था कि कल कुछ अनहोनी होने वाली है। सब कुछ ठीक चल रहा था। रात्रि विश्राम के लिए मैं अपने कमरे में गया, बत्ती बुझाई और सो गया। तड़के मेरी नींद पूरी भी नही हुई थी कि मेरे मित्र संतलाल जी ने मुझे जगझोर का जगय़ा और कहा कि तुम्हारे लिए एक बुरी खब़र है। मुझे लगा बुरी खबर मैं दिमाग की नशे दौड़ाई भी नही थी कि उन्होनें कहा कि तुम जिनके बारे में रात को बात कर रहे थे उनका निधन हो गय़ा है। मुझे यकीन नही हुआ फिर मैं सुनील देवधर जी के कमरे में गया तो वो श्री राम जोशी जी से बात कर रहे थे। जिसमें श्री राम जोशी की रोने की आवाज फोन से आ रही थी फिर मुझे लगा अब सच में ही श्रीकांत जी नही रहे ।
     
श्रीकांत जी ने लगभग छह माह पहले हिन्दुस्थान समाचार में काम करने का मौका दिया। पर मुझे दुख भी हो रहा कि मै ये शब्द ऐसे महायोद्वा के बैकुण्ठ जाने के बाद लिख रहा हू। जो भी हो मुझे गर्व भी हो रहा है और मै अपना यह सौभाग्य समझ रहा हू कि मै ऐसी विशाल व्यक्तित्व वाली उस परम आत्मा के बारे मै लिखने जा रहा हू जो न तो कभी थकी न कभी हारी। जितना भी जीवन जीया तो उस दो राष्ट्र के लिए जीया।  मै यह सोच रहा हू कि सच मै कितना गर्व महशूश होता होगा न उस आत्मा को जन्म देनी वाली मां को जिसका बेटा जीवन की आखिरी स्वास तक राष्टसेवा के लिए समर्पित कर देता है। वो मां भी घन्य है जिसने श्रीकांत जी जोशी को जन्म दिया। मै श्रीकांत जी जोशी  के बारे ज्यादा नही जानता क्योंकि मेरा परिचय उनसे लगभग 6 माह पहले ही हुआ। लेकिन जितना भी पिछले एक माह मै उनके बारे मै सुना उसे जानकर मुझे यह लगता है कि अगर उनके जीवन का एक प्रतिशत हिस्सा भी अगर अपने जीवन मै उतार लिया तो राष्ट्र के लिए वो भी बहुत बड़ा योगदान होगा। मुझे अच्छी तरह याद है जब उनसे मै केशवकुंज मै मिला। लगभग सात  माह पहले  मैं और तरुण केशवकुंज उनसे मिलने पहुचे तब उन्होने मुझसे पूछा की तुम क्या करते हो मैनें हल्की आवाज मैं कहा कि मै पूर्वोत्तर राज्यों के लिए काम करता हू । पूर्वोत्तर राज्यों का नाम सुनते ही श्रीकांत जी ने मुसकुराते हुए पूछा पूर्वोत्तर राज्यों के लिए क्या काम करते हो तो जो भी अनुभव और जो काम मैने पिछले एक दो साल मै किए वो सारे बता दिए । श्रीकांत जी पूर्वोत्तर राज्यों के लिए काम करने की बात से खुश हुए। पर उस समय मुझे यह नही पता था कि श्रीकांत जी ने अपने जीवन के कई वर्ष पूर्वोत्तर राज्यो के उत्थान के लिए दिए। श्रीकांत जी के बारे मै सुनकर यह लगता है कि एक ऐसा व्यक्ति जो कुछ ठान ले और उसे पूरा करे बिना पीछे न हठे बड़ा कठिन काम है । उससे भी बड़ी बात यह कि जो लक्ष्य तय किया वो उसका मार्ग भी सत्य के मार्ग से निकलना चाहिए। अगर वो रास्ता सत्य के मार्ग से नही निकलता तो श्रीकांत जी उसे बिलकुल भी पंसद नही करते थे। मुझे याद है जब दिल्ली मै उनकी स्मृति सभा के दौरान भाजपा के तत्तकालीन अध्यक्ष नितिन गढकरी जी के वो वाक्य जिसमें उन्होनें कहा था कि जब हिन्दुस्थान समाचार को पुनर्जिवित करने का विषय जब आया था तो श्रीकांत जी को चैतरफा विरोध का सामना करना पड़ा था विरोध करने वालों में नितिन गढकरी जी भी शामिल थे। किंतु एक बार लक्ष्य बनाकर लक्ष्य की प्राप्ति तक काम करने वाले श्रीकांत जी विरोध को नजरअंदाज किया और हिन्दुस्थान समाचार को पुनर्जिवित करने का काम किया। मुझे उसी सभा कि अनिरुद्व जी द्वारा कही गयी वो भी बात याद आ रही है कि जिसमे अनिरुद्व जी ने कहा था कि श्रीकांत जी जोशी ने कभी भी अपने सिद्वांतो से समझौता नही किया, जब भी काम किया आत्म स्वाभिमान को जीवित रखखर काम कियाक्योंकि एक विदेश से आया व्यक्ति जो एक बड़ी राशि अनुदान करने  के लिए तैयार था पर वह अपने मुताबिक कुछ परिवर्तन करना चाहता था।पर श्रीकांत जी ने अपने सिंदातो को कायम रखते हु। उस राशि को ठुकरा दिया था। इन दोनो प्रंसगो से यह बात मन मै आ रही है कि एक पत्रकार को अगर आदर्श पत्रकारिता अगर करनी हो तो एक बार जीवन मै वह श्रीकांत जी जोशी के बारे मै जरुर जाने।  श्रीकांत जी को हमारा साथ छोड़कर जाए तीन माह होने को है। विधी का विधान है कि आज जब मैं अपने मन के शब्दो को कप्यूटर पर टाईप कर रहा हू तो ठीक आज यानि 4 दिसंबर को ही श्रीकांत जी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उस आखिरी भेंट मै विधी ने जो करवाया वो अब ऐसा लग रहा है कि क्या श्रीकांत जी को पता चल गया था कि हमारी वो आखिरी भेंट है। क्योंकि उन्होनें तस्सली पूर्वक मुझसे पूछा कि कैसा काम कर रहे हो । कोई परेशानी तो नही है। जाते जाते श्रीकांत जी ने कुछ संपर्क मुझे नोट कराए और कह गए कि इन सब से बात करना और कहना कि मैने कहा है कि तुम्हारी हर पत्रकारिता के काम मै मदद करना।  मै शुक्रगुजार हू सुनील देवधर जी का जिन्होने मुझे श्रीकांत जी की उस पर आत्मा से मिलवाया।

 लेखक हिन्दुस्थान समाचार दिल्ली से जुड़े है।




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