Friday, January 29, 2010

चुगलखोरो से परेशान

आपने चुगलखोरो के बारे में सुना ही, वैसे तो चुगलखोर हर गली हर मोहल्ले में मिल जाते है लेकिन आज में आपको एक चुगलखोर से मिलाता हु , ये चुगलखोर ऐसा चुगलखोर है जो अपने आप को सबसे जादा समझदार समझता है हलाकि लडकिया ईसे प्यार से भाई बोलती है फिर भी ये न जाने अपने आप को क्या समझता है इसका नाम तो इतनी तारीफ के बाद आप समझ ही गए होंगे इसलिए मुझे बताने की जरुरत नहीं है |
मेरी एक राय है आपके लिए कभी भी अपनी बात बताने से पहेले १०० बार सोचे क्योकि ये एक समाचार एजंसी की तरह काम करता है जल्द से जल्द बाते लडकियो तक पहुचना इसकी पहचान है अगर आपने कोई अपनी पर्सनल बात गलती से भी बता दी तो और आपकी ये बात अगर जादा ही पर्सनल हुई तो ये बात जल्द से जल्द या लडकियो से जुडी हुई तो ये बात जल्द ही लडकियो के पास पहुच जाएगी और हा इसकी एक गर्लफ्रेंड भी है फिर भी ये उसका नाम बताने से डरता है अरे जब प्यार किया तो डरना क्या लेकिन दोस्तों ये दर नहीं ये दूसरी गर्लफ्रेंड बनाने का तरीका हो सकता है
अगर जिसके बारे में ये लिखा गया है तो अगर उसको समझ आ गया है तो भाई ये जान लो की किसी फिल्म का डायेलोग है की लड़की बस ट्रेन इन चीजों के पीछे नहीं भागना चहिये क्योकि एक जाती है दूसरी आती है मेरे ये मानना है की १०० में से ९५ बार लड़के ही काम आते है
कृपा बुरा ना माने ये सिर्फ एक भड़ास है
हलाकि ये हो सकता है की इस ब्लॉग को पड़ने के बाद सबधित लोग मुझसे जराज हो जाये पर कोई बात नहीं में कभी सही बात कहेने से कभी नहीं घबराता हु और बाकि सब देख लेगे |

Thursday, January 28, 2010

नाले के रुप मे नदिया

नाले के रुप मे नदिया

यमुना नदी का नया नाम काली नदी !

आज देश में हर तरफ वायु मंडल गरम होने की बाते चल रही है | लेकिन एक तरफ माँ कही जाने ये नदिया गगा यमुना और आदि नदिया नाले की भाति दिखाई देती है क्योकि इनका पानी गंदे नाले की तरह दिखाई देता है ! एक समय था की नदियो के पास से गुजरने मात्र से मन को शांति मिलती थी और हम मन ही मन भगवान को याद करते थे लेकिन मन को शांत करने वाली ये नदिया
अब दुर्गंद देने लगी है अब इनके पास गुजरते समय मुह पर रुमाल लागये बिना नहीं रहा जाता है इसके पानी में से आने वाली सुगंद अब गंद का रूप ले चुकी है |इसलिए अब हम इसका नया नाम
काली नदी दे तो इसमें कोई परेशानी नहीं होगी क्योकि इसका पानी कला हो चूका है
अब इसमें जगह -जगह पन्नी कचरा आदि चीज़े बहती दिखाई देती नजर आ जाती है | कारण कई है लेकिन एक कारण हमने खुद ही बनया है वो कारण है आस्था का है | हम अपनी आस्था में इतने अंधे हो चुके है की हम अपनी माँ कही जाने वाली नदियो को अपवित्र और प्रधुषित` करने पर तुले हुए है हम आस्था के नाम पर धुपवती और मंदिरों में चढाई गई वस्तुए इसमें विसर्जित करते है इससे न केवल हम प्रधुषित कर रहे है बल्कि इससे हम खत्म भी कर रहे है |
एक और गिलेसियरो का पिगालना और दूसरी और इन नदियो का नाले रूप में परिवातित हो जाना ये धरती के विनाश के संकेत नजर आते है | हलाकि सरकार इन नदियो को साफ़ सुथरा रखने के लिए अरबो की राशी इन नदियो में बहा चुकी है और वादे हजार कर चुकी है लेकिन परिणाम हमेशा जीरो नजर आया है, कभी यमुना की सफाई २०१० तक और कभी यमुना की सफाई अब २०२० तक के वादे सुनाई देते है |न जाने ये नदिया कब फिर से
पुराने रूप में आएँगी और कब हम इन्हें गर्व से फिर से माँ कहेंगे
मेरे अनुसार नदियो की पवित्रता को बरकार रखने के ये उपाय कारागार साबित हो सकते है :-
# इसमें गिरने वाले नालो पर पाबंधी लगाई जाये |.
# अगर हम आस्था में अंधे हो चुके है तो नदियो के पास जहा से आधिक मात्रा में पूजा की वस्तुए विसर्जित की जाती है वहा पर विसर्जित वस्तुओं के लिए डिब्बे लगाये जाए |
# एक पेरामीटर बनाया जाये जिस राज्य से आधिक नदिया प्रधुषित होगी उन पर भरी जुरमाना लगाया जाये और कड़े निर्देश
जारी किये जाये |
# युमना सफाई प्लान को भ्रस्टाचार मुक्त किया जाये
# जब हम अरबो की राशी इसकी सफाई पर खर्च कर सकते है तो जैसे युमना का दिल्ली में इसथित पुल जैसी जगहों पर पुलिस कर्मी लगा सकते है और युमना में कूड़ा फैकने वालो को पकड़ सकते है |



मेने जिस समस्या जोर पर दिया शायद ये समस्या सबको कम महतवपूर्ण लगे लेकिन ये समस्या अपने आप में काफी गंभीर है क्योकि नदिया इसी तरह नाले की तरह दिखाई देने लगी तो एक दिन हम पानी पानी के लिए मोह्ताज हो जाएंगे ?

Sunday, January 24, 2010

गणतंत्र दिवस तो याद रहा पर उन गरीबो को भूल गए है जिसके नाम पर गणतंत्र दिवस मना रहे है

गणतंत्र दिवस तो याद रहा पर उन गरीबो को भूलगए है जिसके नाम पर गणतंत्र दिवस मन रहे है
२६ जनवरी को हम बड़ी शान से ६० वे गणतंत्र दिवस को मनायेगे और इसकी तैयारी पूरी हो चुकी है | इस दिन को हम इसलिए बड़े उत्साह से इसलिए मानते है क्योकि २६ जनवरी को हमारे सविधान को लागू किया गया था| सविधान का अर्थ होता जिससे किसी देश का शासन चलाया जाता है | एक तरह से ये दिवस हम लोगो आज़ादी की याद दिलाता है , क्योकि

आज़ादी के लगभग 5 महीनो के बाद ही सविधान को लागू किया गया था, इस दिन वो सविधान लागू किया गया था जिससे देश को सही विकाश और सभी को न्याय आदि मिल सके |
हम हर वर्ष बड़ी शान से गणतंत्र दिवस मानते है लेकिन इस गणतंत्र दिवस को मनाने वाली भारत की सरकार शायद अपने देश गण को भूल चुकी है जो इस देश मे रहते है वो गण जो गरीब है महगाई उससे दिन प्रतिदिन कैंसर की तरह पीड़ित कर रही है वो गरीब जो देश की सरकार को अपना वोट देता है क्योकि उसे लगता देश की सरकार उसको समस्याओं से निजात दिलाएगी

हम गणतंत्र दिवस तो मन रहे है पर आज भी हमारे देश का गण गरीबी से और महगाई जैसी न जाने कितनी समस्याओ से लड़ रहा है और मर भी रहा है गणतंत्र दिवस पर हमे तरह- तरह की झाकिया देखते है लेकिन हमारा देश का गरीब गण वह पर कभी नजर नहीं आता |
उस गरीब को तो ये गणतंत्र दिवस देखने को भी नसीब नहीं होता क्योकि एक रिपोर्ट के अनुसार जिस देश की जनता लगभग १८ से कम आमदनी पर गुजरा कर रही है तो भला कैसे ये भारत का गण कैसे इस गणतंत्र दिवस की परेड की १० या १५ रुपे की टिकेट लेकर कैसे देख सकता है और जहा तक बात है टीवी की भारत के कई ऐसे राज्य है जहा पर अभी तक बिजली का रिश्ता दूर का ही नजर आता है फिर उस गण को क्या फ़ायदा जो इस देश मे रहता है उसका इस गणतंत्र दिवस से क्या लेनदेन है वो तो आज़ादी से पहले भी ऐसा था जो आज है बस परिवर्तन हुआ है तो अंग्रेजो की जगह
घुसखोरो ने ले ली है और नेता भी कम नहीं है अंग्रेज तो केवल सरेआम लोगो को कस्ट देते थे लेकिन हमारे देश के नेता
अंदर ही अंदर गरीबो का खून चूस रहे है और गरीब मर रहा है | गरीब तो आज भी आजाद नहीं हुआ है

Monday, January 4, 2010

आते आते पत्रकार
सबी लोगो की तरह मैंने भी २००९ में १२ साल स्कूल जाकर आखिर बारहवी पास कर ही ली
जब पड़ना था तो हम मस्ती करा करते थे स्कूल में डेस्क का बात बनाकर क्रिकेट खिलते और
पुरे दिन मस्ती करते हा बस स्कूल में एक क्लास जरुर लेना पसंद था क्योकि मुझे भूगोल
पड़ना अच्छा लगता था और भूगोल के सर मुझे बहुत प्यार करते थे मेरे दोस्त भी मेरा खेलेने में बहुत
साथ देते थे वो भी मेरे साथ क्रिकेट खिलते और हम घुमने चले जाते !
लेकिन समय बीत चूका था और धीरे धीरे एक्साम का त्यौहार भी आ गया था और मेने अबी तक कुछ नहीं
पड़ा था और मुझे अब ये चिंता सताने लगी की अब में पास कैसे होगा क्योकि मेने पुरे साल कुछ भी नहीं पड़ा था
लेकिन अब मेने एक फैसला लिया की अब हम सब मिलकर पड़ेगे और बढ़िया नंबर से पास होंगे
फेबरी में मेरी सिस्टर सादी थी फिर मेने सोचा जो हुआ जो हुआ लेकिन अब पड़ना था में और मेरे दोस्त पेपर सुरु होने से पहेले हमने प[अदना सुरु कर दिया और हम लोग एक साथ पड़े और हमारा एक दोस्त एक महिना पड़कर स्कूल टॉप कर दिया और हम भी जेयदा नहीं तो सही नंबर से पास हो ही गए
रिजल्ट आने के बाद हम कॉलेज में दाखिले के लिए दोड़ने लगे मेरी परेशानी को देखते हुए मेरे पापा ने मुझे बिजली वाली स्कोटी दिल्ला दी और हम उसी से दकिले की दोड में लग गए हमने कई जगह फॉर्म भरे और कई
जगह पेपर दिए और और कई जगह पास हुए और कई जगह फ़ैल इसी समय हमने पत्रकार बनने के लिए के लिए
D.U में फॉर्म भी भर दिया और पेपर देकर पास भी हो गए और हमारा नाम भीम राव आंबेडकर कॉलेज में आ गया और हमने धकिला ले लिया दाखिला सिर्फ हम दो जानो को ही मिल पाया था
और यही से सुरु हो गए वो मौज मस्ती के दिन .............फिल्म अभी बाकि है मेरे दोस्त

दिल्ली में स्थानीय स्वायत्त शासन का विकास

सन् 1863 से पहले की अवधि का दिल्ली में स्वायत शासन का कोई अभिलिखित इतिहास उपलब्ध नहीं है। लेकिन 1862 में किसी एक प्रकार की नगर पालिका की स्थ...