Sunday, July 17, 2016

सिग्नेचर ब्रिज : आखिरकार पकने लगी बीरबल की खिचड़ी...

पर्यटन विभाग कर रहा है हर सप्ताह रिव्यू
-     तेजी से हो रहा है काम, 1600 करोड़ पहुंचा बजट
नई दिल्ली (निहाल सिंह) दिल्ली के सिग्नेचर ब्रिज निर्माण में तारीख पर तारीख दिए जाने का समय अब खत्म हो गया। तेजी से हो रहे काम के चलते सिग्नेचर ब्रिज के शुरू होने की उम्मीद जाग गई है। सरकार की माने तो इस साल के अंत तक इसे शुरू कर दिया जाएगा। ब्रिज के शुरू होने के बाद दिल्ली के न केवल पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा बल्कि ब्रिज से गुजरने वालों को दिल्ली का सुंदर नाजारा भी देखने को मिलेगा। पाइल 23 का काम पूरा होने के बाद अब विभाग वैलकैप का काम शुरू करने वाला है। वैलकैप के तहत दोनों प्लरों को जोड़ा जाएगा।
दिल्ली के पर्यटन मंत्री कपिल मिश्रा ने बताया कि सिग्नेचर ब्रिज के निर्माण में पाइल 23 की समस्या आ रही थी, जिसे विभाग ने पिछले दिनों सुलझा दिया है। अब वैलकैपिंग का कार्य किया जा रहा है। कपिल मिश्रा ने उम्मीद जताई की ऩए साल के तौहफे में दिल्ली वालों को सिग्नेचर ब्रिज सौंप दिया जाएगा। मिश्रा ने कहा कि हमारी सरकार आने के बाद सिग्नेचर ब्रिज के काम में तेजी आसानी से देखी जा सकती है। पहले ऐसे लगता था कि सिग्नेचर ब्रिज केवल एक सपना भर बनके रह जाएगा। लेकिन सरकार में आने के बाद हमने इस काम को गंभीरता से लिया है और युद्धस्तर पर हर काम को बखूबी किया जा रहा है। मिश्रा ने कहा कि हम काम जल्दी करना चाहते हैं, लेकिन सभी सावधानियों को ध्यान में रखकर। क्योंकि अगर छोटी सी गलती बहुत बड़ी परेशानी बन सकती है।

 केजरीवाल सरकार का भी ड्रीम प्रोजेक्ट बना सिग्नेचर ब्रिज

पूर्ववर्ती कांग्रेस शासित शीला सरकार द्वारा शुरू किया गया महत्वकांक्षी सिग्नेचर ब्रिज प्रोजेक्ट अब केजरीवाल सरकार का भी ड्रीम प्रोजेक्ट बन गया है। शायद यही वजह है कि सिग्नेचर केजरीवाल सरकार के लोक निर्माण विभाग के मंत्री सतेन्द्र जैन और पर्यटन मंत्री कपिल मिश्रा इस पर पल-पल की खबर रख रहे हैं। सरकार ने इस प्रोजेक्ट को जल्द से जल्द पूरा करने के लिए साप्ताहिक बैठक भी शुरू की हुई है।  बता दें कि यमुना नदी पर 1997 बस हादसे में मारे गए बच्चों की स्मृति में बन रहा है। विदेशी तकनीक पर बन रहे ब्रिज में 150 मीटर ऊंचे टावर स्टील के  बने हैं। टावर के साथ-साथ यमुना पर बनने वाले पुल के लिए 250 मीटर लंबा स्पैन होगा जिसमें 8 लेन होंगी। टावर को वजीराबाद बैराज के सामने दो बड़े पिलरों पर खड़ा किया जाएगा।


यह देश का ऐसा पहला सिंगल पाइलन ब्रिज होगा जिसके बीच के सिरे के एक तरफ  का बैलेंस 18 मोटी केबलों से सधा होगा और उसके नीचे कोई पिलर नहीं होगा और दूसरी ओर मात्र चार केबले होगी। यह पूरा ब्रिज स्टील का बना हुआ और तारों से झूलता हुआ होगा। हाई तकनीक से बन रहा यह ब्रिज पूरी तरह से भूकंपरोधी होगा। ब्रिज के बीचोंबीच बनने वाले मेहराब की ऊंचाई 154 मीटर की होगी और उसके ऊपर विशेष प्रकाश व्यवस्था होगी ताकि रात मे वह दूर से भी दिखाई दे।  सरकार का मानना है कि पर्यटकों को कैलीफोर्निया व शंधाई की तरह दिल्ली में भी गगनचुंबी टावर पर आकर्षक सिग्नेचर ब्रिज लहराता दिखाई देगा। जिस तरह से विदेशों में लिबर्टी ऑफ स्टेचू, क्वीन टावर, लंदन ब्रिज आदि है वैसे ही आने वाले समय में सिग्नेचर ब्रिज नई कलात्मक पहचान बनेगा। जो कि दिल्ली क्या भारत की नई पहचान बनेगा। ब्रिज के निर्माण की जिम्मेदारी गैमन इंडिया की है और कंपनी ब्राजील, इटली की कंपनी के साथ ज्वांइट वेंचर के रूप में इस पुल का निर्माण कर रही है।
सिग्नेचर ब्रिज की रूपरेखा वर्ष 2010 में हुए राष्ट्रमंडल खेलों के देखते हुए बनाई गई थी। सरकार की कोशिश थी कि राष्ट्रमंडल खेलों से पहले इसको शुरू करके विदेशों से आए पर्यटकों का मनमोह लिया जाए। लेकिन कई कारणों से यह काम केवल कागजों पर बनकर रह गया था। वर्ष 2004 में कांग्रेस की सरकार ने सिग्नेचर ब्रिज बनाने का फैसला लिया था। उस समय इसकी लागत 450 करोड रूपए रखी गई थी। इसके बाद इसके डिजाइन को परिवर्तिंत करके इसे माइल स्टोन के रूप में परिवर्तित किया गया। जिसका बजट 1100 करोड़ रूपए कर दिया गया। लेकिन अब इसका बजट 1600 करोड़ रूपए पहंच गया है।

साभार: पंजाब केसरी

Sunday, July 10, 2016

दिल्ली केंदित मीडिया होना विकास के लिए खतरा...

अब कहा है रवीश कुमार

पत्रकारिता में दाखिला लिया था, उस दौरान दिल्ली में यमुना का जल स्तर खतरे के निशान से ऊपर चला गया था। तो पूरे दिन सभी समाचार चैनलों पर दिल्ली की यमुना की तस्वीर यमुना में बोट लेकर पत्रकारों द्वारा जल का बहाव दिखाने की कोशिश, यमुना में बहकर आ रही सब्जियां जैसी खबरे खूब दिखाई जा रही थी। चूंकि मैं पत्रकारिता का छात्र था तो उस दौरान कई दूसरे क्लासमेट अन्य राज्यों से पढ़ने आए थे। उस समय में खबरों का आकलन करने की सोच धीरे-धीरे विकसित हो रही थी। जो दोस्त बाहर से पढ़ने आए थे वह इतने घबराएं हुए नहीं थे, जितने उनके माता पिता घबराए हुए थे। रोजाना दोस्तों को हर तीसरे चौथे घंटे पर फोन आता था कि बाढ़ का पानी कही तुम्हारे घर के पास तो नहीं पहुंचा, अगर ऐसा कुछ हैं तो वापस घर आ जाओं जब बाढ़ चली जाएगी तो वापस चले जाना। मेरे दोस्त कभी हंसते हुए तो कभी गंभीरता से अपने अभिभावकों को विश्वास दिलाते कि उन्हें कुछ नहीं होगा। उस समय समझ आया कि एक माता पिता के लिए अपने बच्चे को दूसरे राज्य में पढाई के लिए भेजना कितना चिंता करने वाला काम होता है। खैर लेकिन बारिश बंद हुए बाढ़ नहीं आई। हा शास्त्री पार्क के कुछ मकानों पर घुटने भर का पानी आ गया था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ कि पूरी दिल्ली बाढ़ से ठप्प हो गई है। मुश्किल से मुश्किल 30-40 हजार अंदाजन लोग इस बाढ से प्रभावित हुए होंगे।
दूसरी घटना पत्रकारिता की पढाई पूरी करने के बाद वर्ष 2013 में देखने को मिली उस समय मैं भी सक्रिय रूप से पत्रकारिता में आ गया था। हिन्दुस्थान समाचार न्यूज एजैंसी में काम कर रहा था, और दूसरी ओर मेरा नवोदय टाइम्स की लांचिंग से पहले ज्वाइनिंग की तैयारी कर रहा था। उस दौरान भी दिल्ली में बाढ़ आई। नवोदय टाइम्स के लिए मैने बाढ़ प्रभावितों से बातचीत करके खूब खबरें की। उस समय चूंकि ज्वाइनिंग नहीं हुई थी तो खबरों पर नाम नहीं छप रहा था, लेकिन कुछ दिनों ज्वाइनिंग की प्रक्रिया भी पूरी हो गई और खबरों पर नाम  भी छपने लगा। चलिए मान लिया की मैंने दिल्ली के अखबार होने के नातें दिल्ली की घटना की जानकारी अपने समाचार पत्र के लिए एकत्रित की। लेकिन क्या राष्ट्रीय चैनलों की इतनी जिम्मेदारी नहीं बनती है कि वह राष्ट्रीय खबरों को प्रमुखता से दिखाएं। कल रात को समाचार देख रहा था, जिसमें पूर्वोत्तर के असम गुवाहाटी में आई बाढ़ की खबर को रात के बुलेटिन में करीब 30 सैंकेड की जगह मिली।  मैं हैरान तो नहीं था लेकिन मन में चिंता जरूर हुई की अब हमारा मीडिया कितना दिल्ली केंद्रित हो गया है। चाहे चुनाव हो या फिर सामाजिक समस्या दिल्ली की ज्यादा कवर की जाती है। अगर यही खबरें अगर पूर्वोत्तर और दक्षित भारत से आएं तो उन्हे रात के बुलेटिन में जगह दी जाती है।  मैं चिंतित था कि समाज को आईने दिखाने वाले समाचार चैनलों के लिए पूर्वोत्तर या दक्षिण भारत की खबरों को कितना गंभीरता से लेते है। क्योंकि वहां चैनल वालों को बाजारी लाभ नहीं मिलता। जो मीडिया चैनल दिल्ली के यमुना के थोड़े से पानी बढ़ने को लेकर अपनी छाती पीटता है वह एक लाख से ज्यादा लोगों को प्रभावित करने वाली असम के गुवहाटी की बाढ़ को केवल औपचारिकता मात्र की खबरों में जगह देता है। दिल्ली से कोई भी रिपोर्टर वहां कवर करने नहीं जाता है। अगर दिल्ली में बाढ़ आ जाती है तो खुद एनडीटीवी के तथाकथित भेड़ चाल से अलग चलने वाले रवीश कुमार भी नांव में बोट लेकर हाल दिखाना शुरू कर देते है। लेकिन गुवहाटी की बाढ़ में यह नजर नहीं आए। जहां पर एक एक मंजिल से ऊपर पानी घरों में घुस गया है। लोगों के लिए खाने के लाले पड़े है।  मेरा मानना है कि ऐसा करना समाचार चैनलों के लिए ऐसा करना देश के विकास के घातक है। क्योंकि जब देश के सीमावर्ती राज्यों की जानकारी राष्ट्रीय मीडिया में नहीं आएगी,तो उससे उन राज्यों में रहने वाले लोगों में हीन भावना आएगी।

Thursday, July 7, 2016

सबसे आगे हम





1 जुलाई 2016 को पंजाब केसरी में प्रकाशित



 7 जुलाई को दैनिक हिन्दुस्तान में प्रकारशित

खबर की सॉफ्ट कॉपी
देश और विदेश में राजधानी दिल्ली की छवि सुधारने के लिए दिल्ली सरकार जुलाई के मध्य में भिखारी मुक्त अभियान शुरू करने जा रही है। इस अभियान के तहत न केवल भिखारियों को पकड़ा जाएगा, बल्कि भिखारियों का पुर्नउद्धार हो सकें इसके लिए विशेष अभियान भी सरकार चलाएगी। मिली जानकारी के मुताबिक दिल्ली का सामाजिक कल्याण विभाग ने भिखारी मुक्त अभियान की योजना तैयार की है। जिसके पहले चरण की कड़ी में जुलाई में शुरू किया जा रहा है।

दिल्ली सरकार के विश्वस्त सूत्रों ने बताया कि भिखारी मुक्त अभियान के लिए दिल्ली सरकार ने विशेष अभियान चलाऩे का फैसला लिया है। जिसके जरिए दिल्ली के विभिन्न इलाकों में भिखारियों को पकड़ा जाएगा। दिल्ली के समाज कल्याण मंत्री संदीप जैन दिल्ली के कनाट पैलेस में इस अभियान का शुंभआरंभ करेंगे।इसके लिए दिल्ली पुलिस के साथ मिलकर दिल्ली सरकार ने सात टीमें गठित की है। यह टीमें दिल्ली के विभिन्न इलाकों मे जाकर भिखारियों को पकड़ेगी। सूत्रों ने बताया कि अभियान का पहला चरण परिक्षण के आधार पर चलेगा। अगर यह प्रयोग सफल हुआ तो आगे भी यह जारी रहेगा।

समाज कल्याण विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि देश की राजधानी होने की वजह न केवल अन्य राज्यों के लाखों पर्यटक दिल्ली में आते हैं बल्कि विदेशों से भी आने वाले पर्यटकों की भी संख्या की बढ़ी तादात होती है। लेकिन जब वह पर्यटक दिल्ली के विभिन्न पर्यटन स्थलों पर जाते हैं तो उन्हें भिखारियों का सामना करना पड़ता है। कई घटनाएं सामने आई है कि भिखारियों की वजह से पर्यटकों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा है। इसकी वजह से पर्यटक दिल्ली की नकारात्मक छवि लेकर जाते है। अगर दिल्ली को भिखारी मुक्त बना दिया गया तो

होगी विडियों ग्राफी, चालू होंगे मोबाइल कोर्ट

दिल्ली सरकार के सूत्रों ने बताया कि भिखारियों को पकड़ने के लिए चलने वाले इस विशेष अभियान के तहत भिखारियों की विडियों ग्राफी की जाएगी। जिसके बाद भिखारियों के लिए बनी मोबाइल कोर्ट में इन्हें इस विडियों के आधार पर पेश किया जाएगा। जानकारों की मानें तो जब भिखारियों को पकड़ा जाता है तो उन्हें मोबाइल कोर्ट में पेश किया जाता है। लेकिन अक्सर देखने में आया है कि भिखारी को जब कोर्ट में पेश किया जाता है तो उनका भिखारी होने को साबित नहीं किया जाता। क्योंकि इसके पीछे एक बढ़ा रैकेट काम करता है जो इन मोबाइल कोर्ट से भिखारियों को रिहा करा लेता है। इसी को देखते हुए दिल्ली सरकार भिखारी मुक्त अभियान के लिए खुफिया कैमरों के साथ समान्य कैमरों से भी रिकार्डिंग करेगी।

लामपुर में पुर्नउद्धार सैंटर में दी जाएगी रोजगार की ट्रैनिग

सूत्रों के मुताबिक भिखारी मुक्त दिल्ली अभियान के तहत दिल्ली सरकार जिन भिखारियों को पकड़ेगी उनका पुर्नउद्धार लाम पुर स्थित भिखारी पुर्नउद्धार केन्द्र में किया जाएगा। जहां महिलाओं को सिलाई की ट्रैनिंग तो वहीं पुरूषों को रोजगार की विभिन्न विधाएं सिखाई जा

Tuesday, July 5, 2016

अब चैन की लंबी-लंबी सांस ले उपाध्याय

आज का दिन दिल्ली भाजपा अध्यक्ष सतीश उपाध्याय के लिए चैन की सांस लेने का है। अभी आपकों समझ नहीं आया होगा। लेकिन मैं आपको समझाने की कोशिश करता हू। समझ आए तो नीचे प्रतिक्रिया बॉक्स में कमैंट और शेयर के जरिए अपनी उपस्थिति दर्ज कराएं।
आईए अब में आपको समझाता हूं कि आज से उपाध्याय क्यों चैन की सांस ले सकते है। और यह चैन की सांस 10 अशोका रोड़ से होते हुए 14 पंडित मार्ग तक पहुंच रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले तीन-चार माह से दिल्ली की राजनीति में सक्रिय हुए विजय गोयल अब केन्द्र में आज राज्य मंत्री बन गए है। विजय गोयल की सक्रियता से न केवल प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी के पहिए ढीले हो गए थे बल्कि पूरा डी4 चिंता में पड़ गया था। आए दिन विजय गोयल की गतिविधियों को देख दिल्ली भाजपा सत्ता रूढ केजरीवाल से जितनी डरती नहीं थी, जितना डर अपने ही भाजपा सांसद विजय गोयल से भाजपा को लग रहा था। प्रदेश अध्यक्ष और डी-4 को चिंता थी,अगर विजय गोयल प्रदेश अध्यक्ष बन गए तो उनका क्या होगा। जिसकी वजह डी4 विजय गोयल को गरियाने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे। खैर अब तो विजय गोयल केन्द्र की राजनीति में पहुंच गए हैं तो डी-4 की मुश्किलें कम हो गई है।
लेकिन मुश्किलें डी-4 की कम हुई है भाजपा की नहीं। दरअसल पिछले दो से तीन सालों में कांग्रेस मुक्त भारत के नारे ने खूब जोर पकड़ा। जिसकी शुरूआत दिल्ली से दिखाई दी। वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव हुए और 15 साल से सत्ता में बैठी कांग्रेस के केवल 8 विधायक जीतकर आए। भाजपा 32 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बन गई लेकिन 28 सीटें जीतकर उस समय नौसिखिया कही जाने वाली आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल ने सरकार बना ली। खैर उसके बाद जो हुआ वह सबकों पता है। कांग्रेस की आठ सीटें देखकर कांग्रेस मुक्त भारत के नारे ने और जोर पकड़ा तो वर्ष 2014 के आम चुनाव में नरेन्द्र मोदी ने लोगों के दिलों पर जादू करके न केवल पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई बल्कि पिछले कई दशकों के रिकार्ड को भी तोड़ दिया। जिसके बाद भाजपाई कांग्रेस मुक्त भारत के नारे को और जोर से बोलने लगे। इस नारे को बोलते समय भाजपाई अब कमर से नीचें का भी जोर लगाते थे। खैर उसी कांग्रेस मुक्त नारे के बीच दिल्ली से भाजपा मुक्त दिल्ली की आवाज आई। हुआ यूं कि वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने न केवल कांग्रेस मुक्त दिल्ली की बल्कि 67 सीटें जीतकर और तीन सीटें भाजपा को दान में देकर भाजपा मुक्त दिल्ली के अघोषित अभियान की शुरूआत कर दी। जिसका नतीजा वर्ष 2016 के मई माह में हुए 13 सीटों के निगम उप चुनाव में दिखाई दिया। विधानसभा में तीन सीटें केजरीवाल से दान में लेकर आई भाजपा फिर तीन सीटें लेने में कामयाब रही। और जिस दिल्ली से कांग्रेस मुक्त भारत के अभियान की शुरूआत हुई उसी दिल्ली से भाजपा मुक्त दिल्ली की शुरूआत हो गई। जिसकी प्रमुख वजह केन्द्रीय भाजपा आलाकमान रहा। और आगे भी ऐसा चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं होगा कि दिल्ली मुक्त भाजपा हो जाए। क्योंकि दिल्ली में भाजपा की राजनीति खत्म हो रही है। एक तो दिल्ली में दो सांसद ऐसे हैं जो दिल्ली से जबरदस्ती सांसद बनें हुए है। जिसमें पहले रामराज (उदितराज) (जी हां उदित राज नहीं रामराज, यह वह जो कभी राम का विरोध करते हुए अपने नाम के आगे से राम शब्द  को हटा लिया था और उदित लगा दिया था) (एक वरिष्ठ पत्रकार के बातचीत के आधार पर) दूसरे सांसद जो नाचने गाने के लिए जाने जाते है। लोकसभा चुनाव जीते तो उन्होंने साफ कार्यकर्ताओं से कह दिया कुछ भी हो जाए वह आगे से दिल्ली से लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेगे।  खैर बहुत ज्ञान हो गया। अब असली बात यह है दिल्ली भाजपा का क्या होगा। तो मैं बेजानदारू वाले की तरह कह सकता हूं कि निगम के फरवरी में होने वाली चुनाव में भाजपा कमाल करेगी, और तीनों निगम में एक-एक-एक सीट कर अपने तीन के आंकड़े को दोहराएगी। इसकी प्रमुख वजह सबसे पहले प्रदेश ईकाई होगी और दूसरी राष्ट्रीय ईकाई।  हालांकि माना जा रहा है कि राष्ट्रीय ईकाई के लिए यह लड्डू बांटने का अवसर होगा। क्योंकि सूत्र बताते है कि केन्द्रीय आलाकमान दिल्ली भाजपा ईकाई से विधानसभा चुनाव के नतीजों को लेकर खुश नहीं है। जिसमें प्रमुख वजह दिल्ली की गुटबाजी थी। अगर दिल्ली भाजपा खत्म होती है तो केन्द्रीय भाजपा के लिए यह खुशी की बात होगी।
आगे की बताता हू। दरअसल प्रदेश अध्यक्ष को बदलने को लेकर काफी दिनों से चर्चा चल रही है । डेढ साल से अब बदला अब बदला, लेकिन अभी तक नहीं बदला वाला हाल है। जिसका असर यह है कि जिलों के अध्यक्ष से लेकर मंडल का कोई कार्यकर्ता प्रदेश आलाकमान की सुनने को राजी नहीं है। जिसकी प्रमुख वजह भाजपा का आधार घट रहा है। पहले अगर उपाध्याय को दोबारा के कार्यकाल के लिए घोषित कर दिया होता तो बात इतनी न बिगडती। लेकिन जमीनी हकीकत की मानें तो भाजपा का हर कार्यकर्ता और नेता प्रदेश अध्यक्ष बदलने की मांग कर रहा है। बस यह है कि वह अपनी बात कह नहीं पा रहा है। मुझे खुद दिन में 10-20 फोन कॉल आते हैं जिसमें कार्यकर्ता बदलने की बात पूछते है। इसलिए अब रायता इतना फैल चुका है कि बिना बदले बात नहीं बनेगी।  


नोट- यह व्यक्तिगत विचार है, इसका किसी संस्थान या व्यक्ति से कोई संबध नहीं है...

दिल्ली में स्थानीय स्वायत्त शासन का विकास

सन् 1863 से पहले की अवधि का दिल्ली में स्वायत शासन का कोई अभिलिखित इतिहास उपलब्ध नहीं है। लेकिन 1862 में किसी एक प्रकार की नगर पालिका की स्थ...