Thursday, September 30, 2010

बटोरने की लड़ाई

जैसा कि सबको पता है की ३० सितम्बर २०१० इतिहास बन गया है क्योकि लगभग वर्षो पहले सुरु हुए विवाद का हल आज आगया है और अयोध्या और देश में रहने वाले हर धर्म के नागरिक ने फैसले को स्वीकार करते नजर आ रहे है.और एक रहत भारी साँस ली है क्योकि देश में साम्पदायिक भड़कने की चिंता थी लेकिन अब हर भारतीय एक नए भारत की और बाद रहा है तो उसे अब भारत की न्यायपालिका  पर भरोषा होना भी जायज है|  
लेकिन इस दिन मीडिया चैनेलो में जो टी आर पी बटोरने की होड़ अलग ही दिखाई पड़ रही थी हलाकि सभी मीडिया चैनल टी आर पी  के लिए ही तो ये सब करते है |
लेकिन ३० सितम्बर  को  जो होड़ सभी मीडिया  चैनलो में दिखाई पड़ रही थी वो देखने लायक थी |
अपनी सीमा में रहा मीडिया 











अगर एक दो चैनलो की बात न करे तो लगभग सभी बड़े मीडिया चैनल अपनी सीमा के अन्दर रिपोटिंग करते नजर आये  लेकिन टी आर पी के खेल में फैसला आने से पहले कोई फैसला आने से लगभग १० मिनट पहले ही ५ मिनट में आने वाला है फैसला की फ्लेश लाइन चलाकर दर्शको को दुसरे चैनल पर न जाने पर कामयाब रहा. और कोई ८ विंडो की लाइव खबर चलाकर कामयाब दिख रहा था लेकिन कुछ भी सही अपनी हद में रहकर रिपोटिंग होती नजर आ रही थी कोई मिर्च मशाला नहीं कोई तड़का नहीं ज्यो ज्यो ही परोश दिया दर्शको के सामने
                      

Monday, September 27, 2010

जन्म दिन कि हार्दिक सुभकामनाये

जन्म दिन कि हार्दिक सुभकामनाये
शहीद भगत सिंह का जन्म २७ /०९/१९०७ को हुआ इसलिए सभी भारत वाशियों कि तरफ से आपको हार्दिक सुभकामनाये
हमे आप जैसे धरती माँ के बेटे पर हमेशा  गर्व रहेगा |
चाहे भारत सरकार याद रखे या न रखे  हमे याद है आपका जन्म दिन ..........

Tuesday, September 7, 2010

अपना धर्म और ईमान भूले दिल्ली के सफदरगंज अश्पताल के डॉक्टर

अपना धर्म और ईमान भूले दिल्ली के सफदरगंज अश्पताल के डॉक्टर
जब किसी सरकारी कर्मचारी को देश कि सेवा करने का मौका दिया जाता है तो उससे एक सपथ ली जाती है कि वे देश में इमानदारी और अपने ईमान  को ध्यान में रखकर देश कि सेवा करेगा |
लेकिन शायद अब सफदरगंज  अश्पताल के डोक्टारो को वो सपथ याद नहीं है जिससे ये लगता है कि वे अप ईमान भूल चुके है
और जीने इस दुनिया में भगवान् का दर्जा दिया जाता है अब वो उन लोगो के लिए  सैतान बन चुके है जो लोग ( मरीज ) इलाज के लिए सफदरगंज  अश्पताल में इलाज के लिए इधर उधर भटक रहे है , कोई गर्भवती महिला  है और कोई राजधानी जब डेंगू  एक गंभीर रूप ले चूका है उस समय ये लगभग ७०० डॉक्टर और सभी महिला कर्मी भी अनिचित्कालिन हड़ताल पर चले गए है  , जैसे इन्हें अपने देश की सेवा करने की जो शपथ ली थी इन्हें उसकी कोई परवाह ही नहीं क्या प्रशासन ये भूल गया है की इस शपथ का पालन न  करने पर क्या कदम उठाया जाता  है
 खैर
दिल्ली में सुरक्षा कि मांग करने वाले  सफदरगंज  अश्पताल के के डाक्टरों  को भला अब कोन समझाए कि जिस राजधानी में प्रतिदिन लूटपाट और बलात्कार और चोरी डकेती होती काफी बड़ी मात्र में होती हो |
और जिस  राजधानी में सिर्फ हम उन घटनाओ के सिर्फ मुल्दर्शक बनकर रह जाते है और सरकार सिर्फ कार्यवाही तथा तफ्तीश के वादे करती हो उस राजधानी की सरकार से आप अपने सुराचा के लिए कैसे भरोषा कर सकते है , और जिस देश के बच्चे - बच्चे को जहा पैसे से हर काम हो जाता हो इन पर आप क्या भरोषा करेंगे  |
चलो माना की हॉस्पिटल में आपको मरीजो के परिजनों से दर लगता है लेकिन आप ये सोचिये  की घर में आप किस किस से डरते है ( कही चोरी न हो जाए ) ये दर तो आपको कभी न कभी तो लगता ही होगा
ये सब छोड़िए अब आप अपने इस देश की पब्लिक द्वारा दिए गए सम्मान यानि भगवान् के रूप को धारण कीजिये और और अपने फ़र्ज़ निभाइए नहीं तो आप जानते ही है की जब इंसान का विश्वाश भगवान् से उठता है वो क्या करने प[आर मजबूर होता है |

Friday, September 3, 2010

एक पोस्ट दोस्तों के नाम

ये तो छोटी सी छवि है मेरे दोस्तों की इसकी लिस्ट काफी लाभी है अगली
पोस्ट में और छविय देने की कोसिस की जाएगी 
एक पोस्ट दोस्तों के नाम
दोस्तों आपने दुनिया में दोस्तों के बहुत सी मिशाले सुनी व देखी होंगी में भी एक मिशाल आपके सामने रखने जा रहा हु  की ये मिशाल भी  कृष्ण और सुदामा   की दोस्ती से कम  नहीं हो सकती
बस फर्क इनता है की वो दोस्ती सतयुग में हुई थी और इस समय हमारी दोस्ती कलयुग में हुई है, ये अपने आप में एक खुद आच्मे वाली बात है मेरे दोस्त इस समय भी मुझसे दोस्ती निभा रहे है पाता नहीं में निभा पा रहा हु या नहीं ये बात मुझे भी नहीं पता
लेकिन मेरे दोस्त दोस्ती सही ढंग से निभा रहे है
एक ऐसा ही उदहारण आपको हाल का ही सुनाता हु में पत्रकारिता का  छात्र हु और में इस वर्ष कॉलेज की चुनावी जंग में कुंद गया जिसमे मेरे दोस्तों में मुझसे जादा महनत की और हम कामयाब भी हुए हमें बहुत से लोगो से प्यार और सहयोग मिला में उनका सुकर्यादा करता हु जिन्होंने मुझे इस लायक समझा और मुझे सहयोग किया
मुझे हार जीत से कोई फर्क नहीं पड़ता किसी विद्वान् ने कहा है की हार जीत कोई मायने नहीं रखती में मैदान में उतरने वाला भी महान होता है इस वाकये से में अपने को महँ नहीं कह रहा हु में बस ये बोलने  का प्रयास कर रहा हु की  हार जीत तो एक ही सिक्के के दो पहलू है बस  हमे तो आगे बदना जिन्दगी बहुत बड़ी है
मुझे इस बात हा दुःख नहीं है की में अपने चुनावों में हार गया मुझे दुःख इस बात का की मेरे दोस्तों की महनत ख़राब हो गई|
और हा जाते जाते दोस्त किसी बही से कम नहीं होते और दोस्तों की तस्वीरे देखने के लिए आप इस लिंक पर क्लीक  करे PAR
आगे तस्वीरे लगे जाएँगी अभी न लगा पाने के लिए माफ़ी क्योकि तस्वीरों अबी किसी कारन लग नहीं पाई है


अभी बाकी है अगली पोस्ट में ....................

दिल्ली में स्थानीय स्वायत्त शासन का विकास

सन् 1863 से पहले की अवधि का दिल्ली में स्वायत शासन का कोई अभिलिखित इतिहास उपलब्ध नहीं है। लेकिन 1862 में किसी एक प्रकार की नगर पालिका की स्थ...