Thursday, June 24, 2021
Wednesday, May 26, 2021
कुछ ऐसा ही था हमारा जमाना
आओं तुम्हें बताऊं खेल पुराना
कुछ ऐसा ही था हमारा जमाना
टूटी हुई चप्पल के पहिए बनाना
पंचर वाली टायर ट्यूब से उसके छल्ले लगाना
दौड़ हमारी थी, लेकिन डंडी वाली गाड़ी का जीत जाना
ईंट का घिस-घिस कर लट्टू बनाना
फिर चीर की सुताई से उसको नचाना
टक्कर मार- मार कर प्रतिद्वंदी का लट्टू हराना
कुछ ऐसा ही था हमारा जमाना
आओं तुम्हें बताऊं खेल पुराना
टायर के साथ हाथ की थाप से दौड़ लगाना
गुड्डा और गुड़िया का ब्याह करवाना
कबाड़े से गोला-पाक और बर्फ खाना
कुछ ऐसा ही था हमारा जमाना
बत्ती आने पर जोर से एक साथ शौर मचाना
अंधरे में छुपन छिपाई का तो है खेल पुराना
सोने से पहले चिराग को जोर वाली फूंक से बुझाना
बरसात में कागज की नांव बनाना
फिर चींटे की उस पर सवारी कराना
सुबह शाम जब जंगल जाते थे
जेब में रखकर आम और ककड़ी लाते थे
अपने खेत में तरबूज होते हुए दूसरे के चुराना
कुछ ऐसा ही था हमारा जमाना
आओं तुम्हें बताऊं खेल पुराना
बिन मौसम भी बाग में फल आते थे
जब हम वहां खेल खेलने जाते थे
बगिया में वो खटिया पर नजर लगाना
बाबा को परेशान कर भाग जाना
तालाब- नदी में डुबकी लगाकर नहाना
बैल भैंसिया की पूछ कर नदी पार कर जाना
पपिया घिसकर उसकी पिपनी बजाना
रेडियों पर कुमार सानू का गीत गुनगुनाना
मामा के आने पर खुशियों से झूम जाना
नानी के लाड के लिए ननसार जाना
साइकिल के लट्टे पर बैठकर बाजार जाना
फिर वहां पर चांट पकौड़ी और जलेबी खाना
साइकिल बड़ी थी लेकिन कैंची वाली चलाकर आएं हौंसले से नहीं
सपील के सहारे गद्दी पर बैठ जाना
गर्मी आते ही नीम पर झूले का डल जाना
आओं तुम्हें बताऊं खेल पुराना
कुछ ऐसा ही था हमारा जमाना
न न निहाल को तुमने क्या पहचाना
ये तो था उसके बचपन का फसाना
-निहाल सिंह
28.05.2021
Tuesday, May 25, 2021
ईएमआई और बीएमआई
ईएमआई भरते-भरते बढ़ गया है बीएमआई।
शहरी इस जीवन की क्या-क्या कीमत चुकाई।
35 की उम्र में 55 का दिखता हूं।
देख पुरानी तस्वीरें बचपन को याद करता हूं।
न जाने ये बीमारियां शरीर में कहां से आई।
नाश्ते और डीनर में अब खाते हैं दवाई।
12 घंटे की है नौकरी,सोचता हूं तो क्या इसलिए की थी इतनी पढ़ाई?
काम बढ़ रहा लेकिन नहीं बढ़ रही है कमाई।
ईएमआई भरते-भरते बढ़ गया है बीएमआई।
शहरी इस जीवन की न जाने क्या-क्या कीमत चुकाई।
न धूप है न शाम है बस काम ही काम है।
सबको लगता है हमारे काम में बहुत आराम है।
वाइफ को चाहिए नए जमाने की लाइफ।
इसलिए शॉपिंग साइट पर क्रेडिट कार्ड होता है स्वाइप।
पड़ोसी ने खरीद ली बड़ी कार।
अब तो अपनी नई भी हो गई बेकार।
कैसे अब मैं नई खरीद लूं भाई।
अभी तो बच्चों के स्कूल फीस भी किस्तों में चुकाई।
जितने बड़े घर में भैंसों को हैं सानी लगाई।
उतने बड़े मकां की अब भरते हैं ईएमआई।
जैसे हो जापा वैसे बढ़ रहा है मोटापा।
जिंदगी में इससे बढ़ा है बहुत सियापा।
पापा की कमाई पर खूब मौज उड़ाई।
अपनी कमाई पर मौज से उड़ जाती है चेहरे की हवाई।
ईएमआई भरते-भरते बढ़ गया है बीएमआई।
शहरी इस जीवन की क्या-क्या कीमत नहीं चुकाई।
कहते बड़े बुजुर्ग, संभल कर चला करों।
थोड़ी सी बचत भविष्य के लिए करा करों।
परेशानी में ये ही बचत सबके काम है आई।
बुढ़ापे में इसी के सहारे जिंदगी चलाई।
जिंदगी की कहानी निहाल ने अपने शब्दों से बताई।
ईएमआई भरते-भरते बढ़ गया है बीएमआई।
शहरी इस जीवन की क्या-क्या कीमत नहीं चुकाई।
Thursday, May 20, 2021
मजा नहीं है...
हवा से बातें करता अपार्टमेंट में मकां है मेरा
पर आंगन में लगे पेड़ वाले घर सा मजा नहीं है।
मातृ भूमि से इस पेट ने कर दिया दूर
इससे बड़ी तिहाड़ की भी सजा नहीं है।
ऐसी -कूलर वाला स्कूल अब तेरा
पर विद्यालय में पेड़ के नीचे लगी कक्षा जैसी
हवा नहीं है
ठोंकर से फूटे हए अंगूठे पर खेत वाली घास सी दवा नहीं है।
कटी हुई उंगली की पट्टी में पल्लु वाली दादी और मां की साड़ी नहीं है।
पायलट पैन हैं तेरा, पर सरकंडे वाली कलम सी बात नहीं है
दवात और खड़िया की अब होती मुलाकात नहीं है।
हवा से बातें करता अपार्टमेंट में मकां है मेरा
पर आंगन में लगे पेड़ वाले घर सा मजा नहीं है।
गाड़ी और बातें हो गई हैं बड़ी
पर वो वाली यारी नहीं है
बैल और बुग्गी की सवारी नहीं है।
नौकरी है पैसा है, पर सब्र नहीं है
यहां अपना ही खोदता है कब्र यह किसी को खबर नहीं है।
मार्निंग में फ्रूट है, नाश्ते में जूस है
मेरा पड़ोसी बड़ा कंजूस है
मेरी मुसीबत में वो जाता मुझसे रूठ है।
इससे तो मेरा गांव ही अच्छा था
घर कच्चा था पर रिश्ते में विश्वास तो पक्का था।
हवा से बातें करता अपार्टमेंट में मकां है मेरा
पर आंगन में लगे पेड़ वाले घर सा मजा नहीं है।
मातृ भूमि से इस पेट ने कर दिया दूर
इससे बड़ी तिहाड़ की भी सजा नहीं है।
बनाउंगा घर मैं गांव में
न निहाल हो जाउ इस शहर फिजाओं में
Tuesday, May 18, 2021
मन्नतों के धागे
तुझे पाने के लिए बांधे हैं मैंने मन्नतों के धागे
तू पास है तो खुदा से अब क्या ही मांगे
तेरे साथ बैठू तो दिल राजधानी सा धड़कता जावे
हैं वो मंजिल मेरी तू जिसके लिए हमने रब्बा से खैर मनावे
तो क्या आज बोल दू वो दिल की बात
जिन ख्याबों को देखने के लिए जागे है पूरी रात
आज थाम लेना मेरा हाथ, वादा है फिर खुदा भी न ये छुड़ा पावे
रहूंगा तेरा उम्रभर सात फेरे में जो गांठे हैं बांधी
आए तुझ पर मुसीबत तो उम्र मेरी हो जाए आधी
मेरे ख्वाब हैं जन्नतों से आगे
हो हमारा घर वहां जिसे किसी की नजर न लागे
तेरे आने से खुशियां भी निहाल
तुझे बता दिया दिल का हाल
तुझे पाने के लिए बांधे हैं मैंने मन्नतों के धागे
तू पास है तो खुदा से अब क्या ही मांगे
Sunday, May 16, 2021
गांव बचा लय
आओं चलो गांव बचा लय
हम भूखें न रहे चलो किसान बचा लें
ताकि तुम्हारें पेट के लिए दाता अन्न उगा लय
आओं चलों गांव बचा लें
जिन तारों को गिनकर तुम्हें गिनती सिखाई थी
उनकी छांव में पलने घरों के चिरागों को बचा लें
आओं चलों गांव बचा लें
कोरोना तो चला जाएगा
पर,घर का कोई चला गया तो उसे कोई वापस न ला पाएगा
इससे पहले सर्दी जुकाम से यह कभी नहीं धबराएं थे
इनके लिए तो मुसीबत के दिन जाड़े और सूखे में ही आए थे
चलों उठों स्कूलों कों अस्पताल बनवा लय
आओं चलों गांव बचा लय
खर्चा ज्यादा न होगा, बस कुछ दिन की पगार लगा लें
आओं चलों गांव बचा लें
ज्यादा ही नहीं कम से कम उन्हें विश्वास दिला दें
आओं चलों गांव बचा लें
शहर जाकर जो तुमने जो ऊंचे मकान बना लय
उनके नींव डालने वाली मिट्टी को उठा लें
आओं चलों गांव बचा लें
संकट की घड़ी, विपदा बहुत हैं बड़ी
चलों टीके का जन जागरण करवा दें
आओं चलों गांव बचा लें
मौका है मातृ भूमि की सेवा का
मदद का हाथ बढ़ाकर गंगा निहाल नहा लें
आओं चलों गांव बचा लें
Wednesday, May 5, 2021
ये लालफीता शाही
नहीं चाहिए हमें ऐसी लाल फीताशाही
तुम तो यूपीएससी पास करके आते हो
सुना है हर खतरें और भविष्य को पहले ही भाप जाते हो
फिर कैसे लोगों के सामने ये लाचारी आई
इलाज न मिल पाने की वजह लाखों ने जान गंवाई?
तुम तो बाबू हो, सरकारी घर भी मिला है
मेरे टैक्स से तुम्हे वेतन और तुम्हारा परिवार चला है
जिसने तुम्हे टैक्स दिया उसके घर पर ये विपत्ति कैसे आई
नहीं चाहिए हमें ऐसी लालफीताशाही
एसी कमरों और आलीशान दफ्तर से बाहर तुम निकले होते
तो ऐसे दिन हम न देख रहे होते
तुम्हे क्या पता घर से अर्थी जाने के बाद कैसी होती है तन्हाई
नहीं चाहिए हमें ऐसी लालफीताशाही
जी हूजूरी से आगे भी तुमने सोचा होता
सच्चाई को खादी के सामने तुमने बोला होता
मैं नहीं कहता कि तुम ही जिम्मेदार हो
लेकिन हर मौत के पीछे तुम ही किरदार हो
देखों भारत की कैसी हो रही जग हसाई
नहीं चाहिए हमें ऐसी लाल फीताशाही
मेरे शब्दों का ये हाल हुआ है
आज तो निहाल भी मौत का मंजर देख बेहाल हुआ है।
सिस्टम हैं या लाश हैं...
मुझे तलाश है सिस्टम की
तुम तो लाश हो गये क्योंकि आक्सीजन कम थी
तड़प रहा हूं तेरे दर पर आकर
कोई तो सांस ही दे दें मेरे घर पर आकर
होटलनुमा जो तुमने अस्पताल बनाए हैं
किसी काम के नहीं जब दरवाजे पर चीखें और श्मशान में चिताएं हैं
किसी की मां को चाहिए, किसी के बाप को चाहिए, किसी के दादा को चाहिए किसी की दादी को चाहिए
एक बेड दिलाने के लिए ऊपर तक पहचान चाहिए
तुम तो कहते तो तुम रखवाले हो
पर सांस ही न दे पाएं तो किस बात का अंहकार पाले हो
तुम दावें बड़े-बड़े करते हो
जब खुद बीमार हो प्राइवेट अस्पताल में बेड ढूंढते हो
मुझे तो एक बेड दिलाने में कई रातें लग गई
पर तुम्हारें छींक आने पर ही कैसे आक्सीजन लग गई
मुझे तलाश है सिस्टम की
तुम तो लाश हो गये क्योंकि आक्सीजन कम थी
आक्सीजन की कमी से केवल इंसान नहीं मरा है
मरा तो सिस्टम भी है जिसके लिए निहाल कफन ढूंढ रहा है
Thursday, March 4, 2021
अच्छा लगता है
सड़कों पर यह जाम अच्छा लगता है
पटरी पर लौट रहा है काम अच्छा लगता है
सीएनजी के लिए पंप पर लगी वाहनों की कतार में इंतजार अच्छा लगता है।
बाजारों में मईया कर रही मोल भाव अच्छा लगता है
देश में कोरोना को हो रहा काम तमाम अच्छा लगता है।
टीका बनाकर भारत ने विश्व में कमा लिया नाम अच्छा लगता है।
स्कूलों में कोरोना से बचने का है इंतजाम
बालकों की चहचहाहट से मैदान बना गुलफाम अच्छा लगता है।
दिल झूमे फिर आई हैं मस्ती भरी शाम
डिस्कों में टकरा रहे हैं कांच भरे जाम अच्छा लगता है
चौक चौराहों पर हैं चर्चाएं हैं आम
कोरोना के बाद निहाल ने कविता लिखकर कमाया नाम अच्छा लगता है।
Friday, January 29, 2021
सिंगल कॉलम खबर मत बनना
मेरी मौत तुम सिंगल कॉलम खबर मत बनना
बनों तो पहले पन्ने की लीड बनना
हो कोई तुमसे बड़ी खबर
तो तुम कम से कम एंकर बनना
एक नजर में सिमटी तो
जान न पाएगा कोई मुझे
खबर पढ़कर अगली खबर पर चला जाएगा
रिपोर्टर हूं कम से कम किसी की बायलाइन बनना
मेरी मौत तुम सिंगल कॉलम खबर मत बनना
तेरा शीर्षक हो ऐसा, जो कभी पहले न लिखा हो वैसा
पहले पन्ने की लीड बनो तो फीचर पन्ने स्पेशल पेज बनना
मेरी मौत तुम सिंगल कॉलम खबर मत बनना
वास्ता हैं तुम्हें उस काली स्याही का
तुम बनाना हेडलाइन मेरी विदाई का
मेरी मौत से दिल सबका बेहाल हुआ है
काम करा है ऐसा कि जमाना निहाल हुआ है।
-निहाल सिंह
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हर इतवार की तरह में अपने दोस्त के साथ बहार गुमने गया यानि अपने ही इलाके में घूम रहा था तो, रस्ते में हम बाते करते हुए जा रहे थे और उधर से त...
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मन करता है कुछ लिखू फिर सोचता हु की क्या लिखू उनके लिए लिखू जिन्हें सुबह के खाने क बाद शाम के खाने का पता नहीं होता या उनके लिए लिखू ...