देखों Abp न्यूज दिवाली पर पटाखों से होने वाले शोर का दिखा रहा है कि हमें पटाखे नही जलाने चाहिए.. सराहनीय है. लेकिन कभी ईद पर बेजूबानो की बली दी जाने वाली प्रथा का भी विरोध होना चाहिए...
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टोल टैक्स वसूली में आप ने लगाया था भ्रष्टाचार का आरोप, अब फिर से सदन में है यह प्रस्ताव
-टोल कंपनी को प्रदूषण के कारण व्यावसायिक वाहनों के प्रवेश पर देनी है छूट -मई माह की बैठक में प्रस्ताव को कमिश्नर के पास भेज दिया था वापस निह...
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हर इतवार की तरह में अपने दोस्त के साथ बहार गुमने गया यानि अपने ही इलाके में घूम रहा था तो, रस्ते में हम बाते करते हुए जा रहे थे और उधर से त...
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गणतंत्र दिवस तो याद रहा पर उन गरीबो को भूलगए है जिसके नाम पर गणतंत्र दिवस मन रहे है २६ जनवरी को हम बड़ी शान से ६० वे गणतंत्र दिवस को मनाय...
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मन करता है कुछ लिखू फिर सोचता हु की क्या लिखू उनके लिए लिखू जिन्हें सुबह के खाने क बाद शाम के खाने का पता नहीं होता या उनके लिए लिखू ...
निहाल जी,
ReplyDeleteप्रश्न का जवाब दिए बिना प्रतिप्रश्न करना जाक़िर नायकी कुतर्क बुद्धि की बडी पुरानी चाल है.
जनाब नौमन अहमद को जवाब चाहिए तो प्रत्यक्ष प्रमाण देते है शाकाहारियोँ मेँ कोमल सम्वेदना होने का यह प्रमाण है कि बँगाल मेँ देवी के समक्ष पशुबली कुरिति का कोई बचाव नही करते, न चिडते है न प्रचँड प्रतिकार करते है, अपने धर्म की कुरितियोँ का भी विरोध समता भाव से स्वीकार करते है. और देश मेँ कईँ जगह से इस कुरिति को दूर करने मेँ सफल भी हुए. यह है जीवदया के प्रति कोमल सम्वेदनाएँ.आप तो करोडोँ शाकाहारियोँ मेँ से शायद 5-15 दुराचारियोँ के नाम गिना भी देँगे, लेकिन हम देते है माँसाहारियोँ की क्र्र मनोवृति का प्रमाण....आप स्वयँ, आप पशुहिँसा के आरोप से बिदक उठते है, अपने धर्म से सम्बँधित कुरिति का उल्लेख आने मात्र से आक्रमक हो उठते है और असम हिँसा की धौस देने लगते है. यह होती है आप जैसे माँसाहारियोँ मेँ क्रूर मनोवृति.(यह प्रमाण देने के लिए उदाहरण मात्र है जरूरी नही सभी के सभी माँसाहारी क्रूर प्रकृति हो), किंतु मवेशी की हत्या बिना क्रूर भाव लाए सम्भव नही, इसी लिए उन हत्यारोँ को कसाई कहा जाता है, जबकि सब्जी मेँ जीवन हो सकता है पर उसे काटने वाले को कसाई नही कहा जाता. इसलिए बिना कसाईपन के माँस प्राप्त नही किया जा सकता.
पेड-पौधोँ और जानवरो दोनो मेँ क्रूरता के भावोँ मेँ भारी अंतर है. नौमन आपने गूँगे बहरे बच्चे की माँ द्वारा ज्यादा ख्याल रखने का उदाहरण दिया था न? यदि किसी माँ के दो बेटे हो एक गूँगा-बहरा और दूसरा सर्वाँग स्वस्थ, दोनोँ मेँ से किसी एक के जीवन समाप्ति का आदेश हो और चुनाव का कहा जाय तो माँ उसी का बचाव करेगी जिसका जीवन पूर्ण आसान सुखप्रद सम्भावना लिए हो, उसका नही जिसका जीवन पहले से ही दूभर हो. विकास की दृष्टि से भी विकसित जीव अधिक मूल्यवान होता है.
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