विशेष रिपोर्ट : निहाल सिंह
नई दिल्ली, 10 जुलाई मनुष्य को छोड़कर दूसरे किसी
भी प्रजाति के जीवों की आबादी को नियंत्रित करने की जरुरत नहीं होती है। उनकी
आबादी को प्रकृति खूद नियंत्रित रखती है,लेकिन
मानव जैसे-जैसे विकास की सीढ़िया फर्लांगते जा रहा है और असाध्य बीमारियों पर काबू
पाते जा रहा है वैसे-वैसे आबादी भी बढ़ते जा रही है। एक दौर था जब किसी महामारी का
प्रकोप होता था तो गांव-गांव की आबादी लुप्त हो जाती थी। एक तरह से मानव की तरक्की
ही प्रकृति के संतुलन पर भारी पड़ रहा है। चीन ने अपने यहां सख्त कानून बनाकर काफी
हद तक अपनी आबादी को काबू कर रखा है,लेकिन
भारत के संदर्भ में जब बात विश्व जनसंख्या की आती है तो दिन दोगुना रात चौगुनी की
कहावत भी कम पड़ जाती है। आज विश्व जनसंख्या का विस्फोट इस तरह दुनिया पर भारी पड़
रहा है,जिसकी
उम्मीद भी नहीं की जा सकती।
प्रति मिनट 25 बच्चे
होते हैं पैदा
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान(एम्स) की वरिष्ठ
गायनिकोलॉजिस्ट डॉ अलका कृपलानी कहती हैं कि आपको जानकर यह आश्चर्य होगा कि अकेले
भारत में प्रति मिनट 25 बच्चे
पैदा होते हैं। यह आंकड़ा वह है जो बच्चे अस्पतालों में जन्म लेते हैं। अभी इसमें
गांवों और कस्बों के घरों में पैदा होने वाले बच्चों की संख्या नहीं जुड़ी है। जबकि
भारत मूल रुप से गांवों और कस्बों का ही देश है और वहां की महिलाओ की डिलीवरी घरों
में ही होती है। अब सोच कर देखिए जब अकेले भारत में इतने बच्चे एक मिनट में पैदा
होते होंगे तो विश्व में कितने बच्चे प्रति मिनट धरती पर आते होंगे। हम जनसंख्या
तो बढ़ा रहे हैं,लेकिन
संसाधनों को इस तरह खत्म कर रहे हैं कि हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए संसाधनों के
खत्म होने का डर लगा हुआ है।
सरकारी कार्यक्रम फेल
हार्ट केयर फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ केके अग्रवाल कहते हैं
कि जागरु कता के नाम पर भारत में कई कार्यक्रम चलाए गए, हम दो हमारे दो
का नारा’ लगाया
गया लेकिन लोग हम दो हमारे दो’
का बोर्ड तो दीवार पर लगा देख लेते हैं और घर जाकर उसे बिलकुल भूल जाते हैं और
तीसरे की तैयारी में जुट जाते हैं। भारत में गरीबी, शिक्षा की कमी और बेरोजगारी ऐसे अहम कारक हैं जिनकी वजह से
जनसंख्या का यह विस्फोट प्रतिदिन होता जा रहा है। कुछ खास समुदाय के लोग अपनी
धार्मिक आस्था के चलते परिवार नियोजन से दूर रहना
चाहते हैं। ऐसे में देश में जिस गति से आबादी बढ़ रही है उस हिसाब से देश के
संसाधनों पर सन 2026 तक न
केवल 40 करोड़ और
लोगों का दबाव बढ़ जाएगा, बल्कि हम जनसंख्या के मामले में चीन को भी पीछे छोड़
देंगे।
महिलाएं स्वैच्छिक परिवार नियोजन से दूर
गंगाराम अस्पताल की वरिष्ठ गायनिकोलॉजिस्ट डॉ आभा मजूमदार
कहती हैं कि जागरुकता के बावजूद महिलाएं परिवार नियोजन के विकल्पों से दूर रह रही
हैं। किसी की धार्मिक आस्था सामने आ रही है तो किसी की सामाजिक ताने। भारत समेत
सभी विकासशील देशों में मां बनने की उम्र की 21 करोड़ 50
लाख महिलाएं स्वैच्छिक परिवार नियोजन तक पहुंच नहीं पाती हैं। लाखों किशोरों
और नवयुवितयों को एचआइवी से बचाव की जानकारी बहुत कम है। सात अरब की आबादी में 1.8 अरब लोग ऐसे हैं, जिनकी उम्र 10 से 24 साल के बीच है।
धरती पर इंसान की उत्पत्ति के कई हजारों साल बाद जनसंख्या ने एक अरब का आंकड़ा छुआ।
दूसरे अरब का आंकड़ा छूने में उसे 120
साल से ज्यादा का इंतजार करना पड़ा। बीते पचास सालों में इंसानों की तादाद में
दोगुना से ज्यादा की वृद्धि हुई। 1959
में तीन अरब थे तो 1984
में चार अरब हो गए। 1997
में पांच तो 1999 में छह
अरब हो गए। सिलसिला जारी है। पृथ्वी की कुल आबादी इस समय 7 अरब से भी ज्यादा
है। सन 2030 और 2040 के बीच विश्व की
जनसंख्या के नौ अरब का आंकड़ा पार कर जाने की संभावना है। अगर जल्द ही वैश्विक तौर
पर जनसंख्या नियंत्रण के अहम कदम ना उठाए गए तो इस बात का डर है कि जनसंख्या का
विस्फोट संसाधनों को निगल जाए और हालात विश्व युद्ध के बन जाएं।