Monday, May 27, 2013

आईवीएफ तकनीक से अधिक उम्र में गर्भधारण पर लगे प्रतिबंध

आईवीएफ तकनीक से अधिक उम्र में गर्भधारण पर लगे प्रतिबंध
नई दिल्ली,  । उत्तर प्रदेश की 68 वर्षीय ग्रामीण महिला, एक साथ तीन बच्चों को जन्म देने की वजह से सुर्खियों में बनी हुई है। ऐसे में जहां एक तरफ आईवीएफ के द्वारा अधिक उम्र के बावजूद मां बन पाना एक वरदान साबित हुआ है वहीं इस उम्र में गर्भधारण करना कानूनी दिशा निर्देशों और होने वाले बच्चे के लिए कितना उचित है यह एक चिंता का विषय बना हुआ है। फार्टिस फेम अस्पताल की स्त्री रोग एवं बांझपन विशेषज्ञ डॉ़ ऋषिकेश पाई ने हिन्दुस्थान समाचार से बातचीत के दौरान कहते हैं कि इस मामले में चिंताजनक विषय यह नहीं है कि अधिक आयु में गर्भ धारण कर पाने की संभावना कितनी अधिक है,बल्कि सोचने वाली बात यह है कि नैतिक रूप से यह कितना सही है। यह एक बहुत ही दुखद बात है कि किस प्रकार तकनीक के वरदान का दुरूपयोग करके इसको अभिशाप में बदला जा रहा है। इसलिए जरुरी है कि चिकित्सक और दंपति दोनों ही विज्ञान के द्वारा मिले विकल्पों का प्रयोग सहायता प्रजनन तकनीक के दिशा- निर्देशों के अनुसार कानूनी दायरे में रहते हुए ही करें,ताकि विज्ञान की यह देन वरदान की जगह अभिशाप न बन जाए।  सर गंगाराम अस्पताल की आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ आभा मजूमदार कहती हैं कि इस तकनीक के इस्तेमाल से कोई भी महिला किसी भी उम्र में अन्य महिला के अण्डदान के द्वारा गर्भ धारण कर सकती है। ज्यादातर देखा गया है कि 50 वर्ष की उम्र के बाद गर्भधारण करने वाली महिलाएं, होने वाले बच्चे पर पड़ने वाले दूरगामी परिणामों को ध्यान में रख कर यह निर्णय नहीं लेती। शारीरिक रूप से महिलाएं सिर्फ निश्चित उम्र तक ही गर्भवती हो सकती है। क्योंकि माता-पिता बनने का दायित्व सिर्फ बच्चे को जन्म देने तक ही पूरा नहीं होता,उन्हें होने वाले बच्चे के लिए सुखमय बचपन और स्वस्थ जीवन को भी सुनिश्चित करना होता है। जब माता पिता, खुद ही स्वस्थ और मजबूत नहीं होंगे उनसे यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि वे होने वाली संतान की सभी मूलभूत जरूरतों को पूरा कर एक अच्छा भविष्य दे पाएंगे।
50 वर्ष से ऊपर की महिलाओं के लिए आईवीएफ हो प्रतिबंधित
मौजूदा समय में 1000 से अधिक सदस्यों वाली भारतीय सहायता जन समूह के वरिष्ठ उपाध्यक्ष डॉ़ ऋशिकेश पाई का कहना है कि 50 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं के लिए आईवीएफ पूरी तरह से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए, क्योंकि चिकित्सा विज्ञान के मुताबिक यह साबित हो चुका है कि अधिक उम्र में गर्भावस्था से मां और बच्चे दोनों को काफी खतरा होता है। बड़ी उम्र में गर्भधारण करने वाली महिलाओं में आमतौर पर मधुमेह, उच्च रक्तचाप होने का खतरा बढ़ जाता है़,जिसका सीधा असर गर्भ में पल रहे बच्चे के विकास पर पड़ता है उन बच्चों में ज्यादातर आनुवंशिक दोष या मृत्यु होने की संभावना रहती है।
डा़ पाई कहते हैं कि जब कोई इस बात को लेकर सुनिश्चित ही नहीं है कि वह जिस नए जीवन को दुनिया में ला रहे हैं उसे गुणवत्ता पूर्ण जिंदगी दे भी सकते हैं या नहीं, ऐसे दंपतियों के लिए अधिक आयु में आईवीएफ द्वारा गर्भधारण पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। डॉ पाई ने सरकार से इसपर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की मांग की है। उत्तर प्रदेश की इस महिला भतेरी के एक साथ तीन बच्चों के जन्म से एक और सबसे बड़ा खतरा सामने आया है। जैसा कि जन्म लेने वाले तीनों बच्चे मात्र 1.5 किलोग्राम के ही हैं। इतनी कमजोर स्थिति में इन बच्चों में संक्रमण एवं कई तरह की समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
प्रजनन तकनीक नियंत्रित करने का कोई कानून नहीं
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के उपाध्यक्ष डॉ के के अग्रवाल कहते हैं कि हालांकि सहायक प्र्रजनन तकनीक को नियंत्रित करने के लिए भारतीय कानून में कोई प्रावधान नहीं है,लेकिन इस तकनीक को भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद और नेशनल अकेडमी ऑफ मेडिकल साइंस के आधार क्षेत्र में रखा गया है। भारतीय असिस्टेड रिप्रोडक्शन व आईवीएफ भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद द्वारा केवल दिशा निर्देश निर्धारित किए गए हैं। इसके लिए अभी तक कोई प्रभावी कानून नहीं है। डॉ अग्रवाल कहते हैं कि सहायक जनन तकनीक के लिए प्रस्तावित दिशा निर्देशों के अनुसार इस प्रक्रिया में गर्भधारण करने वाली महिला के गर्भ में केवल 2 अंडाणुओं को ही विस्थापित किया जा सकता है या फिर किसी जटिल परिस्थिति में अधिक से अधिक 3 अंडाणु,इससे अधिक करना कानूनी दिशा-निर्देशों के विपरीत एक अपराध है। ऐसा इसलिए क्योंकि जितने अधिक अंडाणु गर्भ में डाले जाएंगे उतने ही अधिक भ्रूण बनने की संभावना बढ़ जाती है। यदि एक से अधिक अंडाणु विस्थापित किए जाएंगे तो मल्टीपल प्रेगनेंसी की संभावना भी उतनी ही अधिक हो जाती है। इसलिए यह जरूरी है कि जब तक इस संदर्भ में कोई सख्त कानून भाव में नहीं आता है तब तक सभी आईवीएफ चिकित्सक इस तकनीक को प्रस्तावित दिश- निर्देशों के अनुसार ही प्रयोग करें और उत्तर प्रदेश की 68 वर्षीय महिला को तीन-तीन बच्चों के जन्म का जश्न मनाने का मौका देकर आने वाली मासूम जिंदगी को खतरे में न डालें।

चिकनपॉक्स से बचाव के लिए ‘एंटी रैट्रोवायरल थैरेपी’ ज़रूरी
नई दिल्ली। गर्मी बढने के साथ ही मार्च के महीने में होने वाले चिकन पॉक्स(चिकनगुनिया)की जटिलताओं को देखते हुए विशेषज्ञों ने बूढों एवं बच्चों को एंटी रैट्रो वॉरल थेरेपी लेने की सलाह दी है। इस संबंध में आगाह करते हुए  डॉ. के के अग्रवाल ने बताया कि प्राथमिक संक्रमण ‘वैरीसेला वायरस’ से होता है। जिससे जटिल समस्याएं हो सकती है, जिनमें टिश्यू इनफैक्शन, न्यूमोनिया, हेपेटाइटिस, एन्सीफैलाइटिस जैसी समस्याएं शामिल हैं , जो गर्भवती महिलाओं और वयस्कों में होती हैं। इसकी रोकथाम के लिए सभी वयस्कों और वृद्वों व बच्चों को बुखार की दवाईयां लेनी चाहिए। इससे बचने के तरीकों एवं उपचार के विषय में जानकारी देते हुए डा. अग्रवाल ने कहा कि सभी को नाखून कायदे से काटने चाहिए ताकि किसी समस्या या फिर कीटाणुओं से होने वाले संक्रमण से बचा जा सके । उन्होंने बताया कि खासकर बच्चों में बुखार के उपचार के लिए पैरासीटामॉल दी जानी चाहिए क्योंकि एस्प्रिन से रेम्ये सिंडोम का खतरा हो सकता है। सभी अधिक उम्र के बच्चो और वयस्कों को असाईलोविर दी जानी चाहिए। साथ ही उक्त थैरेपी उन लोगों को भी दी जानी चाहिए जो घर में रहते हों ओर वे क्रोनिक क्यूटेनियस या कार्डियोपल्मोनरी डिसआर्डर का शिकार हों । डा. अग्रवाल ने कहा कि असाइक्लोविर, वैरिसेला के लिए तभी सुरक्षित और प्रभावी है जब इसे चकत्ते निकलने के 24 घंटे के अंदर दिया जाए। इसके लिए डा. अग्रवाल ने टीकाकरण पर भी विशेष घ्यान देने की बात कही। उन्होंने कहा कि बिना इम्युनिटी प्रमाण के 12 से 15  महीने के सभी बच्चों को वैरिसेला टीकाकरण करवाना चाहिए। वैरिसेला वैक्सीन की दूसरी डोज नियमित तौर पर चार से छह सालों तक दी जानी चाहिए।। इस बिमारी से बचने के लिए सभी आशंकित बच्चो का उनके 13 वें जन्मदिन तक पूर्ण टीकाकरण करवाना अनिवार्य है।

सिर दर्द बन सकता है ब्रेन ट्‌यूमर
नई दिल्ली,। अक्सर ही मस्तिष्क के रोगों की शुरुआत सिर में असाधारण दर्द के साथ होती है। सुबह सोकर उठने के बाद यह सिरदर्द असहनीय रहता है और दिन गुजरने के साथ यह धीरे-धीरे कम होता है। पटपडगंज स्थित मैक्स हॉस्पिटल के न्यूरो सर्जन डॉ. अमिताभ गुप्ता का कहना है कि यही सिर दर्द ब्रेन ट्‌यूमर जैसी खतरनाक बिमारी का आगाज भी हो सकता है। जिसकी पहचान जितनी पहले हो जाए, इलाज उतना ही आसान हो जाता है।
डॉ. अमिताभ का कहना है कि ब्रेन ट्‌यूमर के लक्षण सीधे उससे संबंधित होते हैं जहां दिमाग के अंदर ट्‌यूमर होता है। उदाहरण के लिए मस्तिष्क के पीछे ट्‌यूमर के कारण दृष्टि संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। प्राय: ब्रेन ट्‌यूमर का निदान करना थोडा मुश्किल होता है क्योंकि इसमें पाए जाने वाले लक्षण किसी अन्य समस्या के भी संकेत हो सकते हैं। बोलते समय अटकना, दवाइयों, नशीले  पदार्थों या शराब का सेवन करने के कारण भी हो सकता है। जब यह लक्षण बहुत तीव्रता के साथ उत्पन्न होने लगते हैं तो यह ब्रेन ट्‌यूमर का कारण हो सकते हैं। डॉ. अमिताभ गुप्ता के अनुसार इंडोस्कोपिक सर्जरी में सफलता की दर बहुत ऊंची है और यही कारण है कि दुनिया भर में मस्तिष्क की सर्जरी के लिए इस सुरक्षित तरीके को अपनाया जा रहा है।


उचित आराम एवं प्राणायाम से व्यक्ति जा सकता है बुढापे से युवावस्था की ओर
नई दिल्ली। हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और आईएमए के निर्वाचित उपाध्यक्ष डॉ. के के अग्रवाल ने कहा कि ऐसा संभव है कि हमारी उम्र बढने पर भी हमारी सोच जवां रह सकती है। इसकी संभावना अधिक है।
डॉ. अग्रवाल ने कहा कि मानव का शरीर सिर्फ एक ढांचा नहीं है, बल्कि इसमें एक मानसिक स्तर, आध्यात्मिक और आत्मा होती है। उम्र बढने के साथ-साथ सिर्फ मानुष्य का शरीर बूढा होता है, लेकिन उसके शरीर के अन्य हिस्से उम्र के साथ परिपक्व होते जाते हैं। एक व्यक्ति उम्र के बढने के साथ ही अधिक विनम्र होता जाता है। मनुष्य के शरीर का अंत बुढापे के तौर पर नहीं, बल्कि युवा होने के तौर पर होता है। उन्होंने आगे कहा कि व्यक्ति की जैविक और आध्यात्मिक उम्र देखनी चाहिए न कि उसकी शारीरिक उम्र। वर्तमान समय के मुताबिक हो सकता है कि आप 70 साल की उम्र के हों, लेकिन जैविक रूप से हो सकता है कि आपकी आयु 60 साल की ही हो। डा. अग्रवाल ने कहा कि चिकित्सा विज्ञान में आज अधिकतर दवाएं जैविक उम्र के हिसाब से ही दी जाती हैं, न कि काल के उम्र के अनुरूप।
हमारे वेदों में भी यही सीख दी गई है कि हम कैसे युवा रह सकते हैं। आज के युग की महामारी आइरन, कैल्शियम और विटामिन डी की कमी है जिनका संबध ऑस्टियोपोरोसिस से है। इसके साथ ही कार्बोहाइडेट संबधी हृदय से जुडी बीमारियां समाज में नहीं घुस सकतीं बशर्ते हम परंपरागत खाने के तरीके जैसे हफ्ते में एक बार गुड-चना, माघ माह में सूर्य की पूजा और हफ्ते में एक बार ही कार्बोहाइडेट को ले। ये ऐसे रीति-रिवाज हैं जिनको भारत के हर एक नागरिक को अपनाने पर जोर दिया जाना चाहिए। डॉ. के के अग्रवाल ने कहा कि आराम, प्राणायाम और ध्यान को अपनाकर भी व्यक्ति बुढापे से युवावस्था की ओर अग्रसर होता है। दिन के समय पैरासि पैथेटिक मोड पर खडे रहकर आप अलग अनुभव कर सकते हैं।

आंखों में छुपी हैं हार्टअटैक की मिस्ट्री
नई दिल्ली। आंखों से न सिर्फ हमें खूबसूरत प्रकृति दृश्यों को ही दिखाते हैं बल्कि यह किसी का हाल-ए-दिल भी हमें बया करती हैं। आपका दिल कितना अच्छा काम कर रहा है। कब यह आपको झटका देगा, इन बातों का जवाब भी आंखें देती हैं। आपकी आंखें आपके रक्तचाप और मधुमेह की स्थिति का सही आंकलन कर आपको होने वाले हृदयघात के बारे में जानकारी देती हैं। आपका कार्डियोलॉजिस्ट यदि आपकी आंखों की पड़ताल किसी आई सर्जन की तरह करने लगें तो आप हैरान मत होइऐगा। वह आपके हाल-ए-दिल का मुआयना कर यह बताने में सक्षम होंगी कि आपको कभी हार्ट अटैक होगा या नहीं। ऑपथेलोस्कोप आंखों के भीतर झांककर, बताती हैं दिल का हाल। आईसेवन अस्पताल के निदेशक व वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. संजय चौधरी कहते हैं कि हालांकि बीमारियों के बारे में जानकारियां हासिल करने के लिए आंखों में झांकने की बात कोई नई नहीं है। पहले भी चिकित्सक बीमारियों की उपस्थिति का पता लगाने के लिए आंखों के अंदर झांकते रहे हैं। उन्होंने बताया कि ऑपथेलोस्कोप उपकरण की मदद से आंखों के भीतर झांककर रक्तचाप, हृदय संबंधी गडबडियां, मधुमेह और ब्रेन स्टोक जैसी बीमारियों की उपस्थिति के बारे में पहले ही पता लगाया जा सकता है। डॉ संजय चौधरी कहते हैं कि आंख के रेटाइनल आर्टियोल्स एवं रक्त वाहिकाओं के बदलते आकार में परिवर्तन हृदय में होने वाली किसी गडबडियों की ओर इशारा करता है।एक अध्ययन से सामने आया कि आंख और हृदय का संबंध का खुलासा इंडियन हार्ट फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. आरएन कालरा ने आंख और हृदय के बीच के संबंधों पर हुए शोध के हवाले से बताया कि वाशिंगटन और मिशिगन विवि के एक अध्ययन में यह साबित हुआ है कि दिल के तार आंखों से भी जुडे हैं। डॉ कालरा ने बताया कि रक्त वाहिकाएं के सिकूडन व फैलने के अलावा ऑप्टिक नर्व के बेस में होने वाली सूजन कार्डियोलॉजिस्ट को हृदय की गडबडियों के बारे में संकेत दे देता है।

1 comment:

  1. इस बात से मै सहमत .नही हूँ | हर किसी को माता-पिता बनने का पूरा हक है चाहे वो किसी भी उमर का क्यु ना हो | उसकी भी मन की तमन्ना होती है | अगर किसी को भी आईवीएफ उपचार करवाना है तो वो हमारे सेंटर से कम दाम मै करवा सकता है| दिए गये वेबसाइट लिंक को क्लिक करे और हमारे साथ अपनी नियुक्ति बुक करे. आईवीएफ बांझपन फर्टिलिटी ट्रीटमेंट सेंटर भारत

    ReplyDelete

दिल्ली में स्थानीय स्वायत्त शासन का विकास

सन् 1863 से पहले की अवधि का दिल्ली में स्वायत शासन का कोई अभिलिखित इतिहास उपलब्ध नहीं है। लेकिन 1862 में किसी एक प्रकार की नगर पालिका की स्थ...