दिल्ली में 15 दिसंबर 2017 के बाद ऐसी बयार चली जिसमें बहुत से लोगों का जीवन खतरें में पढ़ गया। यह बयार कोई प्राकृतिक बयान नहीं थी बल्कि यह बयार सीलिंग की थी। छुट-पुट शुरू हुई इस सीलिंग से लोगों के घर बार उजड़ रहे हैैं, जो लोग किसी न किसी तरीके से अपना जीवन यापन कर रहे थे, आज उन परिवारों पर संकट के बादल छा रहे हैैं। लेकिन दिल्ली की राज्य सरकार और नगर निगम अपनी-अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने में लगे हैैं। वहीं कथित व्यापारी नेताओं को भी अखबरों में नियमित छपने का अवसर मिल गया। यही वजह है कि अभी तक व्यापारी नेता राज्य सरकार और नगर निगम समेत केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय पर कोई नैतिक दवाब बनाने में भी नाकाम रहे हैैं। अगर व्यापारी नेता कामयाब रहे होते तो अब तक दिल्ली में सीलिंग से उजड़े परिवारों को दर्द अखबारों की फ्रंट पेज की हेडलाइन बनता। आज भी दिल्ली में सीलिंग की खबर चौथे या पांचवे पन्ने की खबर बन रही है। इसमें मीडिया
का दोष नहीं है, कि मीडिया चौथे और पांचवे पन्ने पर सीलिंग की खबरों को स्थान दे रहा है। बल्कि दोष इन व्यापारी नेताओं का है जो सीलिंग पर सरकार पर दवाब बनाने में विफल साबित हो रहे हैैं।
वहीं इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से लेकर मॉनिटरिंग कमेटी भी जनता को सही संदेश नहीं दे पा रही है। जनता ने अवैध निर्माण किया है उसकी सजा उसे सीलिंग के तौर पर मिल रही है। लेकिन अभी तक उन पुलिस वालों और निगम के अफसरों पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई जिनकी मौजूदगी में यह अवैध निर्माण से लेकर अवैध कब्जे पनपे। क्या सुप्रीम कोर्ट और मॉनिटरिंग कमेटी इन अफसरों को बचा रही है। अभी तक की कार्रवाई से तो लोगों को यही लग रहा है। स्पष्ट कर दूं कि यह लेख कमेटी और सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ नहीं है, लेकिन एक पत्रकार होने के नाते जो ग्राउंड लेवल पर लोगों का दर्द यही है। क्योंकि जनता का कहना है कि संपत्ति सील कर दी थी... ठीक है... लेकिन उस निगम अफसर या पुलिस वाले पर कार्रवाई कब होगी जिसने इस अवैध निर्माण और कब्जे को पनपने दिया। क्या उस समय एमसीडी के अफसर कुंभकरणी नींद सोये हुए थे। बिल्कुल नहीं। एमसीडी के अफसर और नेता पैसा बना रहे थे। लेकिन अभी तक उन पर कोई कार्रवाई नहीं। वह अफसर रिटायर भी हो चुके हैैं। और उस समय कमाया हुआ पैसा ठिकाने भी लगा चुके हैैं। लेकिन जनता का दोष इतना है कि उसने जीवन भर की कमाई को एक प्लाट या दुकान खरीदने में लगा दिया। अब उसकी कमाई तो डूबी ही उसका जीवन भी डूबने की कगार पर है। लेकिन नेता और अफसर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैैं। इस तरह हजारों परिवार उजड़ जाएंगे। और दिल्ली में सात सांसदों वाली भाजपा और दिल्ली के 66 विधायकों वाली आम आदमी पार्टी का कोई नाम लेवा नहीं रहेगा। भले ही अपनी-अपनी राजनीति चमकाकर कोई सीटें बचा ले लेकिन जनता देख रही है कि उनकी इस दुख की घड़ी में राजनीतिक पार्टियां साथ नहीं है। बस ड्रामे बाजी पर उतारू है।
एक दुकान होने से एक व्यक्ति नहीं कम से कम 50 व्यक्ति का रोजगार छिनता है। इसलिए क्यो न उस सरकारी एजैैंसियों पर भी कार्रवाई की जाए जिन्होंने इस अवैध निर्माण को पनपे दिया और लोगों की जरूरत के मुताबिक संसाधन उपलब्ध नहीं कराए।
अवैध कालोनियों में मजबूरी में रहे है लोग
अवैध कालोनियों दिल्ली की राजनीति की सबसे बड़ी दुकान बन चुकी है। सभी पाटियां चुनाव के समय इन्हें नियमित करने और इनमें सुविधाएं देने का लालच देकर वोट तो ले जाती है, और सरकार भी बना लेती है, लेकिन इन कालोनी वासियों को दिल्ली में सरकार बनने के बाद मिली है तो सिर्फ दुत्कार। अपनी-अपनी राजनीति का थीकरा निगम के लोग और राज्य सरकार के लोग करते हैैं। यह लोग एक साथ आकर इन कालोनियों को नियमित करने के लिए कदम क्यों नहीं उठाते समझ से परे है। शायद सबको अपनी राजनीति खत्म होने का ठर है। लेकिन लोगों का जीवन तो बर्बाद हो रहा है। यहां रहने वाले लोग शौक से अपना जीवन यापन नहीं कर रहे है। सभी लोगों को पार्किंग और पार्क की सुविधा चाहिए जिसे देने में निकाय और सरकार विफल साबित हुई है।
कांग्रेस का जिक्र इसलिए नहीं हैक्योंकि यह समस्या कांग्रेस की बनाई हुई है
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