- - 28 साल से बिछड़े हुए लोगों को मिला रही हैं संध्या
- - मेले में महिलाओं ने भी संभाल की कमान
- - दो लाख लोग पहुंचे प्रगति मैदान
- - तकनीक से बदली मेले की तस्वीर
नई दिल्ली (निहाल सिंह)
नमस्कार यह धोषणा फलानी जगह से आए फलाने व्यक्ति के लिए है। एक बच्चा अपना नाम
नहीं बता पा रहा है,लेकिन उसने नीले रंग की ड्रेस पहन रखी है, उसके साथ आए परिजन
कृपया केन्द्रीय सूचना केन्द्र पर संपर्क करे। ऐसी ही कुछ घोषणाएं आपने ट्रेड फेयर
में सुनी होगी। यह घोषणा कोई और नहीं संध्या करती है। पिछले 28 सालों से वह ट्रेड
फेयर में बिछड़े लोगों को मिलाने का काम करती आ रही है।
संध्या रॉय का कहना है कि
वैसे तो यह उनका काम हैं, लेकिन काम में लोगों के चेहरे पर मुस्कान आने से जो
सुकुन दिल को मिलता है शायद ही किसी ओर को मिले। उनका कहना है कि वह कई सालों से
ट्रेड फेयर में काम कर रही हैं , लेकिन आज तक उन्होंने ट्रेड फेयर कभी पूरा नहीं
घूमा। क्योंकि उनकी डूयटी ही ऐसी है। हर
साल 14-27 नवंबर तक उनका काम यहां रहता हैं पर पूरा घूमने का मौका नहीं मिला।
छोटे बच्चों के मिलाना सबसे
कठिन काम
संध्या की तरह पिछले 4 साल
निधि वत्स भी बिछड़ों को मिलाने का काम कर रही है। निधि वत्स का कहना है कि सबसे
ज्यादा मुश्किल तब हो जाती है, जब बच्चा काफी छोटा होता है। निधि ने बताय़ा कि जो
बिछड़े हुए छोटे बच्चे होते हैं, उनसे सबसे पहले उनका नाम और घर का पता पूछा जाता
है। लेकिन कुछ बच्चे यह भी नहीं बता पाते। फिर उनके कपड़ो का रंग बता कर उनकी
घोषणा की जाती है। उन्होंने बताया कई मां-बाप अपने बच्चों को ढूंढते हुए रोते हुए
आते हैं, लेकिन जब उनका बच्चा मिल जाता हैं तो एक बहुत प्यारी से खुशी चेहरे पर
देखने को मिलती है। जिससे उन्हें और पूरे केन्द्रीय सूचना केन्द्र के कर्मियों को
खुशी मिलती है।
मोबाइल आने से कम हुई
परेशानी
मेले की पब्लिसिटी हेड वी.
मीरा ने बताया कि शनिवार तक 10 बच्चे मेले में बिछड़े, सभी को उनके दोस्तों और
परिवार को सही सलामत सौंप दिया गया। वी. मीरा ने बताया कि बदलते समय के साथ कुछ
समस्याएं अपने आप की खत्म हो गई है। मीरा के मुताबिक 15-20 साल पहले जब लोगों के
पास मोबाइल नहीं हुआ करता था, तो सबसे ज्यादा लोगों की घोषणा करनी पड़ती थी। लेकिन
बदलते समय और बढ़ती तकनीक के साथ अब कम लोगों की घोषणा करनी पड़ती है। वी. मीरा के
मुताबिक अब लोग खुद ही मोबाइल पर बात करके मिल जाते हैं, लेकिन छोटे बच्चों के गुम
होने का सिलसिला अभी भी जारी है। वी. मीरा ने कहा कि हम पहले से दर्शकों से अपील
करते हैं कि बच्चों और बुजुर्गों की जेब में अपने नाम-पते और फोन नम्बर की एक
स्लीप लिखकर रख दे, जिससे लोगों को आसानी से उनके परिजनों से मिलाया जा सके।
उन्होंने बताया कि 100 में से केवल एक ही दर्शक ऐसा करता हैं जिससे उन्हें ही
परेशान होना पड़ता हैं। वहीं सबसे ज्यादा परेशानी तब हो जाती हैं जब दिल्ली के
अलावा अन्य राज्यों से आए लोग यहां आकर बिछड़ जाते हैं।
भीड़ की वजह से नहीं देख
पाएं स्टॉल
शनिवार को पहुंची भीड़ की
वजह से न तो लोग फोटो खींचवा पाए और न ही किसी चीज को ढंग से देख पाए। भीड़ के
चलते पवैलियन में गार्ड ज्यादा देर तक किसी भी स्टॉल के सामने रूखने नहीं दे रहे थे।
वहीं पवैलियन की खूबसूरती के बाहर अपनी सेल्फी खींचवाना या फिर किसी फोटो खींचना
भी दर्शकों के लिए मुश्किल हो गया था।
मोबाइल नेटर्वक से हुई
दिक्कत
शनिवार को भारी भीड़ की वजह
से मेले परिसर में मोबाइल फोन ने काम करना बंद कर दिया। जिसकी वजह से दर्शकों को काफी
दिकक्त का सामना करना पड़ा। खुद मेले के आयोजन में जुटे लोग भी इससे परेशान दिखे।
मोबाइल पर नो नेटवर्क एरिया बताया जा रहा था। एक नम्बर लगाने के लिए 10-15 बार
नम्बर मिलाने के बाद कॉल लग पा रही थी।