Wednesday, December 31, 2014

भाई कोई मरे तो मुझे जरुर बताना

- चुनावी तिकड़म के चलते शमशान घाटों और जागरणों में हाजिरी लगा रहे हैं नेताजी
- रोजाना 4-5 क्रियाओं में शामिल होने लगे नेताजी
- विधानसभा लडऩे के लिए स्थानीय लोगों को जोडऩे की नई तिकड़म अपना रहे हैं दिल्ली के नेता
नई दिल्ली, (निहाल सिंह): दिल्ली में चुनावों की आहट के साथ ही, नेताजी इलाके में अपनी सक्रियता बढ़ा रहे हैं, हालात यह हैं कि नेताजी ने अपने चंपूओं को आदेश दिया है कि इलाके में किसी की भी मृत्यु होने पर उन्हें तुरन्त बताया जाए। नेताजी किसी की मृत्यु की सूचना मिलते ही तुरन्त शोक स्थल पर जा बैठते हैं।
सूत्रों की मानें तो इसके लिए नेताजी बकायदा अपना भेष भी कुछ ऐसा बनाते हैं, कि शोकाकुल परिवार को लगे की जैसे नेताजी खबर मिलते ही सबसे पहले उनके ही घर आ गए हैं।
चुनाव से पहले अपने आकाओं के सामने हाजिरी लगाने वाले नेता अचानक से अर्थियों के सामने हाजिरी लगा रहे हैं। आलम यह है कि नेताजी सुबह शाम शमशान घाटों, कब्रिस्तानों में नजर आने लगेे हैं।
भाजपा, कांग्रेस सहित आम आदमी पार्टी  के नेता भी इस चुनावी तिकड़म को भिड़ा रहे हैं। कहीं-कहीं तो चौंकाने वाली स्थिति नजर जाती है। आमतौर पर कई चक्कर लगाने के बाद भी न उपलब्ध  हो पाने वाले नेताजी अपने प्रतिद्वंदियों के साथ शमशान घाट में नजर आते हैं।  
नेताजी की संवेदनशीलता का आलम यह है कि अपनी-अपनी विधानसभा में नेताजी ने अपने कुछ चंपूओं को मौत, क्रिया, जागरण, भजन संध्या पर खास नजर रखने के निर्देश दिए हंै। वहीं कुछ नेताओं का हाल तो यह है कि पार्टी दफ्तर पहुंचने से पहले भी अगर कोई मौत की खबर आ जाती है तो नेताजी वहीं से अपनी गाड़ी मुड़वा लेते हैं। और अपने चंपूओं से बस शमशान घाट का नाम पूछते हैं। खास बात यह है कि नेताजी की कार में शोक सभा में जाने का भी पूरा इंतजाम रहता है। जैसे ही नेताजी को मौत की खबर मिलती है नेताजी गाड़ी में ही सूट-वूट उतारकर अपने पुराने कुचड़े-मूचड़े कपड़ों को पहन लेते हैं। अगर नेताजी को पता चलता है कि शोकाकुल परिवार का इलाके में काफी प्रभाव है तो नेताजी घडिय़ाली आंसू भी बहाने में पीछे नहीं रहते।
वहीं कुछ नेताओं ने अपने चंपूओं को उनके ऑफिस में जागरण और शोक सभाओं के कार्ड देने आने वालों को खास तरह का ट्रीटमैंट देन का निर्देश भी दे रखा है। नाम न छापने की शर्त पर एक नेताजी का कहना है किसी के सुख दुख में शामिल होने से परिवार को दुख सहने की शक्ति मिलती है। लेकिन जानकार बताते हैं कि किसी शोक सभा, क्रिया, जागरण में जाने से स्थानीय लोग नेताजी से आसानी से कनेक्ट हो जाते हैं, जिसका फायदा नेताजी को चुनाव में मिलता है।

Sunday, November 23, 2014

नमस्कार यह घोषणा ट्रेड फेयर आए लोगों के लिए है

  • -    28 साल से बिछड़े हुए लोगों को मिला रही हैं संध्या
  • -    मेले में महिलाओं ने भी संभाल की कमान
  • -    दो लाख लोग पहुंचे प्रगति मैदान
  • -    तकनीक से बदली मेले की तस्वीर
नई दिल्ली (निहाल सिंह) नमस्कार यह धोषणा फलानी जगह से आए फलाने व्यक्ति के लिए है। एक बच्चा अपना नाम नहीं बता पा रहा है,लेकिन उसने नीले रंग की ड्रेस पहन रखी है, उसके साथ आए परिजन कृपया केन्द्रीय सूचना केन्द्र पर संपर्क करे। ऐसी ही कुछ घोषणाएं आपने ट्रेड फेयर में सुनी होगी। यह घोषणा कोई और नहीं संध्या करती है। पिछले 28 सालों से वह ट्रेड फेयर में बिछड़े लोगों को मिलाने का काम करती आ रही है।
संध्या रॉय का कहना है कि वैसे तो यह उनका काम हैं, लेकिन काम में लोगों के चेहरे पर मुस्कान आने से जो सुकुन दिल को मिलता है शायद ही किसी ओर को मिले। उनका कहना है कि वह कई सालों से ट्रेड फेयर में काम कर रही हैं , लेकिन आज तक उन्होंने ट्रेड फेयर कभी पूरा नहीं घूमा। क्योंकि उनकी  डूयटी ही ऐसी है। हर साल 14-27 नवंबर तक उनका काम यहां रहता हैं पर पूरा घूमने का मौका नहीं मिला।
छोटे बच्चों के मिलाना सबसे कठिन काम
संध्या की तरह पिछले 4 साल निधि वत्स भी बिछड़ों को मिलाने का काम कर रही है। निधि वत्स का कहना है कि सबसे ज्यादा मुश्किल तब हो जाती है, जब बच्चा काफी छोटा होता है। निधि ने बताय़ा कि जो बिछड़े हुए छोटे बच्चे होते हैं, उनसे सबसे पहले उनका नाम और घर का पता पूछा जाता है। लेकिन कुछ बच्चे यह भी नहीं बता पाते। फिर उनके कपड़ो का रंग बता कर उनकी घोषणा की जाती है। उन्होंने बताया कई मां-बाप अपने बच्चों को ढूंढते हुए रोते हुए आते हैं, लेकिन जब उनका बच्चा मिल जाता हैं तो एक बहुत प्यारी से खुशी चेहरे पर देखने को मिलती है। जिससे उन्हें और पूरे केन्द्रीय सूचना केन्द्र के कर्मियों को खुशी मिलती है।
मोबाइल आने से कम हुई परेशानी
मेले की पब्लिसिटी हेड वी. मीरा ने बताया कि शनिवार तक 10 बच्चे मेले में बिछड़े, सभी को उनके दोस्तों और परिवार को सही सलामत सौंप दिया गया। वी. मीरा ने बताया कि बदलते समय के साथ कुछ समस्याएं अपने आप की खत्म हो गई है। मीरा के मुताबिक 15-20 साल पहले जब लोगों के पास मोबाइल नहीं हुआ करता था, तो सबसे ज्यादा लोगों की घोषणा करनी पड़ती थी। लेकिन बदलते समय और बढ़ती तकनीक के साथ अब कम लोगों की घोषणा करनी पड़ती है। वी. मीरा के मुताबिक अब लोग खुद ही मोबाइल पर बात करके मिल जाते हैं, लेकिन छोटे बच्चों के गुम होने का सिलसिला अभी भी जारी है। वी. मीरा ने कहा कि हम पहले से दर्शकों से अपील करते हैं कि बच्चों और बुजुर्गों की जेब में अपने नाम-पते और फोन नम्बर की एक स्लीप लिखकर रख दे, जिससे लोगों को आसानी से उनके परिजनों से मिलाया जा सके। उन्होंने बताया कि 100 में से केवल एक ही दर्शक ऐसा करता हैं जिससे उन्हें ही परेशान होना पड़ता हैं। वहीं सबसे ज्यादा परेशानी तब हो जाती हैं जब दिल्ली के अलावा अन्य राज्यों से आए लोग यहां आकर बिछड़ जाते हैं।

भीड़ की वजह से नहीं देख पाएं स्टॉल
शनिवार को पहुंची भीड़ की वजह से न तो लोग फोटो खींचवा पाए और न ही किसी चीज को ढंग से देख पाए। भीड़ के चलते पवैलियन में गार्ड ज्यादा देर तक किसी भी स्टॉल के सामने रूखने नहीं दे रहे थे। वहीं पवैलियन की खूबसूरती के बाहर अपनी सेल्फी खींचवाना या फिर किसी फोटो खींचना भी दर्शकों के लिए मुश्किल हो गया था।

मोबाइल नेटर्वक से हुई दिक्कत
शनिवार को भारी भीड़ की वजह से मेले परिसर में मोबाइल फोन ने काम करना बंद कर दिया। जिसकी वजह से दर्शकों को काफी दिकक्त का सामना करना पड़ा। खुद मेले के आयोजन में जुटे लोग भी इससे परेशान दिखे। मोबाइल पर नो नेटवर्क एरिया बताया जा रहा था। एक नम्बर लगाने के लिए 10-15 बार नम्बर मिलाने के बाद कॉल लग पा रही थी।


Saturday, October 25, 2014

औके टाटा ओटोग्राफ


करीब दस साल पहले मैं नोएडा के लक्ष्मी स्टूडियों अपने एक गांव के भईया के माध्यम से गया था।  भईया उस स्टूडियों में इलैक्टीशन थे, जब भी कोई नई सूटिंग स्टूडियों में होती थी तो वो बारी-बारी से हमारे रिश्तोंदारों के हर बच्चें को लेकर जाते थे। एक बार ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी एक कार्यक्रम की शूटिंग के लिए आने वाली थी। उस दिन मेरा नंबर था तो भईया स्टूडियों ले गए। किसी कारण से हेमा मालिनी के कार्यक्रम को देर हो गई तो भईया ने शेखर सुमन के एक बाल शो की शूटिंग मैं मुझे बैठा दिया। बड़ा दिलचस्प अनुभव था। शूटिंग खत्म होने से पहले ही भईया ने मुझे स्टूडियों के  दरवाजे के बाहर खड़ा कर दिया क्योंकि जैसे ही शूटिंग खत्म हुई भीड़ से बचने के लिए शेखर सुमन दरवाजे से बाहर निकले और फिर भईया के ईशारे पर मैंने उन्हें पकड़ लिया और हाथ मिलाया। हाथ मिलाकर खुशी हुई पर अब मैने सोचा कि घर पर सबकों कैसे बताऊंगा कि मैं किससे मिला तो भईया ने बताया कि अब एक घंटे बाद फिर से दूसरी शूटिंग हैं उसमें शेखर सुमन आए तो ओटोग्राफ ले लेना। उन्होंने  तीन रूपए वाली एक साधारण सी डायरी अपनी जेब से निकाली और ओटोग्राफ लेने के लिए फिर से स्टूडियों के प्रवेश दरवाजे पर खड़ा कर दिया। मैं शेखर सुमन का ओटोग्राफ लेने में कामयाब रहा। लेकिन अब आधुनिक और वट्स-अप के समय में ओटोग्राफ के मायने बदल गए हैं। ज्यादातर लोग तशल्ली के दौरान ही ओटोग्राफ लेते हैं, नहीं तो जल्दबाजी के दौर में टोग्राफ लेना थोडा टेड़ा कार्य है। पर मुझे लगता है कि लोग ओटोग्राफ को टाटा कर चुके हैं। इसे उदाहरण कहिये या अनुभव मुझे हाल ही में आमिर खान के एक साप्तहिक शो की शूटिंग के दौरान देखने को मिला। मुमकिन है कि शूटिंग थी।शूटिंग खत्म होने के बाद कोई भी व्यक्ति आमिर खान के साथ सैल्फी नहीं खिचवा पाया। इसका प्रमुख कारण शूटिंग से पहले ही सभी के मोबाइल बाहर जमा कर लिए गए थे तो ज्यादातर लोगों ने आमिर खान से सिर्फ हाथ मिलाने में ही रूचि रखी । करीब दौ सो लोग उस कार्यक्रम की शूटिंग के लिए हॉल में थे पर किसी ने भी ओटोग्राफ नहीं लिया। इसके बाद जिस मीडिया संस्थान का मैं हिस्सा हूं उस संस्थान के साथ आमिर के साथ एक संक्षिप्त साक्षात्कार था। इसमें हमारे संपादक सहित ज्यादातर संवाददाता भी थे। और 20 के करीब हमारे अखबार के पाठक थे। आमिर के साथ जैसे ही बातचीत समाप्त हुई तो मेरे एक सहयोगी ने तो बात समाप्ती के माहौल को समझते हुए अपने स्मार्ट फोन के कैमरे को सैल्फी मोड पर लगा लिया और जैसे ही आमिर के करीब जाने का मौका मिला तो सहयोगी ने फटाक से आमिर के साथ अपनी सैल्फी ले मारी। पर मैं इस कार्य को करने में नाकामयाब रहा क्योंकि इससे पहले सिर्फ अपनी फोटो तो खींची थी, अपने साथ किसी और सैल्फी आज तक मैंने क्लीक नहीं की थी। खैर हम पत्रकार थे तो मुझे लगा हम कहा स्टार का ओटोग्राफ क्यों लेंगे, ओटोग्राफ तो सामान्य नागरिक लेते हैं। पर मैं देखकर हैरान था सभागार में उपस्थित कोई भी व्यक्ति आमिर के ओटोग्राफ लेने में रूचि नहीं दिखा रहा था। सभी के सभी लोग केवल सैल्फी सैल्फी का खेल खेलने में लगे हुए थे।
ऐसा ही कुछ देखने को मिला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दिवाली मिलन कार्यक्रम में। यहां पर भी जब मोदी पत्रकारों के पास पहुंचे तो सारे पत्रकार सैल्फी खींचाने के लिए मोदी के दाएं बाटे सट कर खडे होने का प्रयास करते नजर आए। हर कोई मोदी के साथ सैल्फी खींचवाना चाहता था। यहां पर भी किसी की रूचि ओटोग्राफ लेने  नहीं थी। इन प्रकरण के लिए हम लोग आधुनिकता का प्रभाव भी मान सकते है। क्योंकि कुछ वर्ष पहले न तो इतने आधुनिक मोबाइल हुआ करते थे और न ही फेसबुक की लत लोगों को थी। आज के समय में तो फोटो ट्वीटर और फेसबुक पर पोस्ट हो जाती हैं तो वट्सअप की प्रोफाइल यानि डिस्प्रले तस्वीर बन जाती हैं। खैर बस इतना समझना होगा कि सैल्फी ने ओटोग्राफ को चित करके औके बाय-बाय टाटा कर दिया है।

निहाल सिंह
पत्रकार

aatejate.blogspot.in

Saturday, August 16, 2014

नवोदय टाइम्स





सिर्फ कॉलोनियों में ही दौड़ पाएगा ई रिक्शा

- मेट्रो स्टेशन से 25 मीटर पहले उतरानी होगी सवारी
- 12 जोन में अलग- अलग नम्बर की होगी सिरिज
- घर पर ही करनी होगी चार्जिंग, निगम ने तैयार की ई रिक्शा पर पॉलिसी
नई दिल्ली 11 अगस्त (निहाल सिंह) गाइडलाइन न होने की वजह सें ई रिक्शा पर लगी रोक को हटवाने के लिए निगम ने कार्रवाई करनी शुरू कर दी है। निगम ने ई रिक्शा पर पॉलिसी तैयार कर ली है। पॉलिसी के तहत अब ई रिक्शा सिर्फ कॉलोनियों में ही दौड़ सकेंगे। और मैट्रो स्टेशन के पास जाम न लगे इसलिए सवारी को स्टेशन से 25 मीटर दूर ही उतारना और चढ़ाना होगा।
फिलहाल इस पॉलिसी को दक्षिणी दिल्ली नगर निगम (एसडीएमसी)तैयार कर रहा है, लेकिन तैयार होने के बाद तीनों निगमों में यही पॉलिसी मान्य होगी। एसडीएमसी  के नेता सदन सुभाष आर्य ने बताया कि निगम जल्द से जल्द ई रिक्शा वालों को राहत देने के कार्य में जुटी हुई है। इसी कार्य के तहत निगम अपनी पॉलिसी बना रही है। उन्होंने कहा तीनों निगमों के नेताओं और निगम आयुक्तों ने पॉलिसी के लिए सुझाए गए सुझावों पर अपनी सहमति दे दी है। आर्य ने कहा कि चूंकि ई रिक्शा का उपयोग वहां होता है जहां पर परिवहन विभाग के साधन उपलब्ध नहीं हैं, ऐसे में ई रिक्शा को कॉलोनियों में ही दौडऩे की ही अनुमति होगी।
 विशेषज्ञों के सुझाव के अनुसार 60 फीट से चौड़ी सड़को पर ई रिक्शा के चलने से सड़क हादसों की वजह बनता है इसलिए उसके इन सड़को पर सवारी ढोने की अनुमति नहीं होगी। लेकिन यह इन सड़को से दूसरी कॉलोनी में जाने (क्रास) करने के लिए स्वतंत्र होंगे। इसके साथ ही 4 सवारी और पचास किलों का वजन के साथ घर पर ही चार्जिंग करने का नियम भी लागू होगा।
सुभाष आर्य ने बताया कि यह रिक्शा ट्रैफिक नियमों के अनुसार ही चलेंगे। जिसमें नियमों के उल्लघंन करने पर जुर्माना भी किया जाएगा।  अब एसडीएमसी पॉलिसी बनाकर निगम इसे सदन की बैठक में प्रस्तुत करने की तैयारी कर रही हैं। बता दें कि गाइडलाइन न होने की वजह से दिल्ली उ"ा न्यायालय ई रिक्शा पर पांबदी लगा रखी है।

12 कलर के होंगे ई रिक्शा
एमसीडी ने ई रिक्शों के पंजीकरण की अलग व्यवस्था करने पॉलिसी बनाई है। जिसके तहत निगम का हर जोन इसके पंजीयन के बाध्य होगा। जिसमें उसे पंजीकरण  नम्बर के साथ चालक का मोबाइल नम्बर,पते के साथ हैल्पलाइन नम्बर भी लिखना होगा। वही बताया जा रहा है कि दिल्ली में 12 रंग के ई रिक्शा चलाने की योजना है।
यह होंगे नियम
- ट्रैफिक नियमों के दायरे में चलना होगा
- 60 फीट से चौड़ी सड़को पर ही दौडऩा होगा
- 4 सवारी और पचास किलों वजन से 'यादा करने पर होगा जुर्माना
- हर रिक्शा के पीछे लिखना होगा चालक का नम्बर और पता
- बीमा भी जरूरी होगा
- ड्राइविंग लाईसेंस ॉ
-घर पर ही करनी होगी चार्जिंग

Monday, July 14, 2014

आस्था के रंग में डूबी राजधानी



महाशक्ति की आराधना का पर्व नवरात्र शुरू हो चुका है और इसे लेकर शहर के मंदिरों और बाजारों में खास चहल-पहल है। यह पर्व तीन देवियों- पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ विभिन्न रूपों की उपासना के लिए निर्धारित है, जिन्हें हम नवदुर्गा के नाम से जानते हैं। पहले के तीन दिन पार्वती के तीन स्वरूपों की, उसके बाद के तीन दिन लक्ष्मी माता के स्वरूपों की और अंत के तीन दिन सरस्वती माता के तीन स्वरूपों की पूजा की जाती है। इस त्योहार के  दौरान मंदिरों को विशेष रूप से सजाया जाता है और उनमें खासी हलचल देखी जा सकती है। नवरात्र में और दिनों की अपेक्षा मंदिर के पट जल्दी खुल जाते हैं ताकि श्रद्दालु जितनी सुबह हो सके मां के दर्शन को जा सकें। मंदिरों में आज से भजन-कीर्तन का माहौल बना हुआ है और मां की आरती की विशेष तौर पर तैयारियां की गई हैं। शहर के बाजारों में भी नवरात्र के दौरान रौनक बनी रहेगी। दुकानदारों ने लोगों की पसंद को ध्यान में रखते हुए खास तैयारियां कर ली हैं।
नवरात्र शुरू हो चुका है और ऐसे में दिल्ली के हर मंदिर में हलचल बनी हुई है।  मंदिरों में आज लाखों की संया में श्रद्दालु जुटे और उन्होंने मां की अर्चना की। राजधानी में नवरात्र हर साल काफी धूमधाम से मनाया जाता है। नौ दिनों तक मंदिरों में उत्सव का माहौल बना रहता है। आज हम दिल्ली के कुछ ऐसे ही मशहूर मंदिरों की बात कर रहे हैं जहां भक्त हर साल नवरात्र के मौके पर अपनी मनोकामना पूरी करने और मां का आर्शीवाद लेने जाते हैं।
झंडेवालान मंदिर
झंडेवालान मंदिर दिल्ली का बहुत ही पुराना मंदिर है जो मां आदि शक्ति को समर्पित है। मां आदि शक्ति मां दुर्गा का एक अवतार हैं। यह मंदिर दिल्ली के झंडेवालान रोड पर स्थित है। यहां बस या मेट्रो से आसानी से जाया जा सकता है। इस मंदिर में पूरे साल लाखों की संया में श्रद्दालु आते हैं और मां का आर्शीवाद लेकर अपनी मनोकामना पूरी होने की दुआ करते हैं। मंदिर का नाम झंडेवालान शाहजहां के शासनकाल के दौरान दिया गया था। ऐसा कहा जाता है कि झंडेवालान एक समय में पहाड़ी क्षेत्र में स्थित था। जब इस जगह की खुदाई की गई तो मां का पावन स्थल उभरा था और इसी जगह पर मंदिर को स्थापित किया गया। ऐसी मान्यता है कि बद्री भगत, जो कि मां के बहुत बड़े भक्त थे, ने मां का सपना देखा था और मां ने ही उन्हें इस प्रतिमा के बारे में बताया था। उसके बाद मंदिर की स्थापना उसी जगह पर की गई। हिंदुओं के लिए यह मंदिर बहुत ही पवित्र स्थल है। इस मंदिर में हर जाति और ओहदे को लोग आते हैं और पूजा करते हैं। सुबह से लेकर रात तक मंदिर मां के मंत्रों से गूंजता रहता है। जो भी भक्त यहां आते हैं उन्हें मां का आर्शीवाद मिलता है और उनके जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। झंडेवालान में काफी त्योहार मनाए जाते हैं। नवरात्र के दौरान यहां विशेष इंतजाम किए जाते हैं। विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। मंदिर को फूलों और लाइटों से सजाया जाता है। मंदिर का मनमोहक वातावरण श्रद्दालुओं के  दिल और दिमाग को सुकून देता है।
कालकाजी मंदिर
कालकाजी मंदिर दिल्ली का बहुत ही पुराना मंदिर है जो मां काली को समर्पित है। यह मंदिर दक्षिणी दिल्ली के कालकाजी में स्थित है। नेहरू प्लेस के पास स्थित होने के कारण यहां जाना बेहद आसान है। ऐसी मान्यता है कि यहां मां कालका की प्रतिमा स्वयं प्रकट हुई थी। कालकाजी मंदिर भारत का बहुत ही पुराना मंदिर है। यह मंदिर मां कालका या काली को समर्पित है जो की मां दुर्गा का एक रूप हैं। इसे जयंती पीठ या मनोकामना सिद्ध पीठ भी कहा जाता है। मनोकामना का अर्थ इच्छा होता है, सिद्ध का अर्थ पूर्ति और पीठ का अर्थ मंदिर। इसलिए ऐसी मान्यता है कि जो भी इस मंदिर में आकर मां कलिका देवी का आर्शीवाद लेता है उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है। इस मंदिर के पास ही मशहूर बहाई लोटस टेपल भी स्थित है जो पर्यटकों के आकर्षण का मुय केंद्र है। इसके साथ ही इस्कॉन मंदिर भी पास ही स्थित है।
वैसे तो कालकाजी मंदिर में पूरे साल भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन नवरात्र के दौरान का नजारा कुछ अलग ही रहता है। नवरात्र के दौरान यहां लाखों की संया में श्रद्दालु आते हैं और मां के दर्शन करते हैं। नौ दिनों तक यहां उत्सव का माहौल बना रहता है। इस मौके पर मंदिर को भी भव्य तरीके से सजाया जाता है। भक्त यहां आकर मां की जय-जयकार के नारे लगाते हैं और साथ ही भजन-कीर्तन पर झूमते नजर आते हैं।
गुफावाला मंदिर
प्रीत विहार स्थित गुफावाला मंदिर पूर्वी दिल्ली का बहुत ही मशहूर मंदिर है। इस साल गुफा को बहुत ही भव्य तरीके से सजाया गया है। गुफा के शीर्ष पर भगवान शिव की एक मूर्ति भी निर्मित है। यहा पर भक्त सुबह चार बजे से मध्यरात्रि तक दर्शन के लिए जा सकते हैं। यहां का मुय आकर्षण मां चिंतापूर्णी और मां ज्वाला देवी के मंदिर है। नवरात्र के दौरान यहां पर लाखों की संया में श्रद्दालु माता के दर्शन के लिए आते हैं। माता की चौकी और भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है और नौ दिनों तक यहां ऐसी ही धूमधाम रहती है। यह गुफा 18 साल पूरानी है और यह मंदिर वैष्णो देवी मंदिर की याद दिलाता है।
 नीलम माता मंदिर
मयुर विहार फेज 2 में स्थित नीलम माता मंदिर काफी पुराना है और यह गुफा तकरीबन 10-12 साल पुरानी है। इस गुफा का निर्माण मां वैष्णो देवी की गुफा को ध्यान में रखकर किया गया था। यह 500 यार्ड तक फैला हुआ है। इस मंदिर में दर्शन करने का सबसे अच्छा समय शाम 7 बजे से रात के 10 बजे तक है। नवरात्र के दौरान हर सुबह 8 बजे यहां पर दुर्गा शतचंडी महायज्ञ का आयोजन किया जाता है। यहां पर नौ लाईटें लगाई गई हैं जो कि पूरी गुफा को रात भर जगमगाती रहेंगी। नीलम माता मंदिर एक ऐसा मंदिर है जो अपनी भव्य सजावट के लिए काफी मशहूर है।
छत्तरपुर मंदिर
दिल्ली का एक बहुत ही पुराना मंदिर है छत्तरपुर मंदिर। यह कुतुब मीनार से 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर बहुत ही बड़ा है और यहां आकर काफी शांति का एहसास होता है। इस मंदिर की बनावट आधुनिक है और यहां पर बड़े पैमाने पर मार्बल का इस्तेमाल किया गया है। मुय मंदिर मां दुर्गा को समर्पित है। मां दुर्गा के अलावा यहां भगवान शिव, विष्णु, लक्ष्मी और गणेश जी के मंदिर भी निर्मित है। भक्त यहां इन सभी देवी-देवताओं की पूजा करने आते हैं। दुर्गा पूजा के दौरान यहां भारी संया में श्रद्दालु आते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं। ऐसी मान्यता है कि मंदिर के अंदर स्थित पेड़ में धागा बांधने से मनचाही मुराद पूरी होती है। पूरे दिन प्रवचन और आरती चलती रहती है जिसमें कोई भी श्रद्दालु हिस्सा ले सकता है। यह मंदिर बहुत ही बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है और इसकी बनावट में दक्षिणी और उत्तरी शैली का मिश्रण नजर आता है।
बिड़ला मंदिर
लक्ष्मी नारायण मंदिर को बिरला मंदिर भी कहते हैं। यह भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को समर्पित मंदिर है। 7.5 एकड़ के विस्तृत क्षेत्र में बने इस मंदिर का निर्माण वर्ष 1933 से 1939 के बीच बी आर बिड़ला और जुगल किशोर बिड़ला द्वारा करवाया गया था। बिड़ला मंदिर का उद्घाटन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हाथों से करवाया गया था। बिड़ला मंदिर के अगल-बगल के हिस्से में बने मंदिरों में भगवान शिव, कृष्ण और बुद्ध की मूर्तियां हैं। झरनों और बागीचे से घिरे इस मंदिर की खूबसूरती देखते ही बनती है। वहीं हिन्दू धर्म के लगभग सभी खास त्योहारों जन्माष्टमी, दूर्गा पूजा और दीवाली में मंदिर को खूब सजाया जाता है। इन साी त्योहारों के दौरान बिड़ला मंदिर आकर्षण का खास केंद्र होता है। मंदिर में प्रवचनों के आयोजन के लिए खास तौर पर गीता भवन नाम की इमारत का निर्माण भी करवाया गया है। यह इमारत भगवान कृष्ण को समर्पित हैं। यह तीन मंजिला मंदिर हिन्दू मंदिर वास्तुकला की उत्तरी या नगारा शैली में बना है। मंदिर के अंदर हर दीवार पर हिंदू पौराणिक कथाओं को दिखाती नक्काशी की गई है। कहा जाता है कि मंदिर में नक्काशी के इस काम के लिए शिल्पकारों को खासतौर पर बनारस से बुलाया गया था। मंदिर का सबसे उंचा शिखर 160 फीट उंचा है।  मंदिर का मुख पूर्व दिशा की ओर बनाया गया है। वहीं दीवारों पर बनी फ्रेस्को पेंटिग मंदिर के सौंदर्य को और बढ़ा देती है। मंदिर में स्थापित की गई सभी मूर्तियां विशेष रूप से जयपुर से मंगवाए गए संगमरमर से बनवाई गई हैं। मंदिर के बांयी तरफ बने शिखर में शक्ति की देवी दूर्गा का मंदिर है। वहीं मंदिर के मुय भाग में ागवान नारायण और देवी लक्ष्मी की मूर्तियां हैं। यह मंदिर कनॉट प्लेस की पश्चिमी दिशा में मंदिर मार्ग पर स्थित है। बस और ऑटो से यहां आसानी से जाया जा सकता वहीं अगर मेट्रो से जाना चाहते हैं तो सबसे निकटतम मेट्रो स्टेशन राम कृष्ण आश्रम मार्ग है।
संतोषी माता मंदिर
संतोषी माता मंदिर दिल्ली के हरि नगर में स्थित है। यह मंदिर तकरीबन चालिस साल पुराना है। पहले यहां एक छोटा-सा मंदिर हुआ करता था लेकिन लोगों की आस्था बढ़ती गई और बाद में इस मंदिर का भव्य निर्माण किया गया। संतोषी माता को संतुष्टि का प्रतीक माना जाता है। संतोषी मां की पूजा ज्यादातर महिलाएं करती हैं। ऐसा माना जाता है कि सोलह शुक्रवार का व्रत रखने से मां सभी महिलाओं की मनोकामना पूर्ण करती हैं। नवरात्र के मौके पर यहां भारी संया में भक्त आते हैं और मां का आर्शीवाद लेते हैं। नौ दिनों तक यहां भंडारा चलता है। इस मौके पर 4000 सेवादार यहां मौजूद रहते हैं और हर रोज हजारों की संया में श्रद्दालु यहां मां के दर्शन के लिए आते हैं।

Thursday, June 19, 2014

Sunday, April 27, 2014

गर्मी में सेहत बिगाड़ सकते हैं कटे फल और जूस



- उल्टी, दस्त, डायरिया, पीलिया होने का बड़ा खतरा
- पूरे शहर में बड़ी कटे फल बेचने वालों की संख्या
- कटे फल और खुला जूस बेचने पर हैं पांबदी
नई दिल्ली २५ अप्रैल () गर्मी आते ही शरीर में पानी मांग बढ़ जाती है। पानी की मांग बढ़ने से सफर के दौरान जूस पीने की इच्छा होना स्वाभाविक है। इसी को देखते हुए गर्मी आते ही शहर की प्रमुख बाजारों या भीड़ भाड़ वाले इलाकों में फल की चाट और गन्ने की जूस की बिक्री बढ़ जाती है। इसलिए अक्सर जब हम सफर कर रहे होते हैं तो बस या मैट्रो से उतरने के बाद सड़क किनारे फल की दुकान से चाट का स्वाद लेने में पीछे नहीं रहते हैं। लेकिन यह स्वाद आपको भारी पड़ सकता है। क्योंकि विशेषज्ञों की राय हैं कि यह कटे फल और गन्ने का जूस आपकी सेहत को न केवल नुकसान पहुंचा सकता है बल्कि भारी परेशानी में भी डाल सकता है।

घर से खाकर और पानी लेकर निकले साथ
दिल्ली मैडिकल एसोसिएशन के सदस्य डॉ अनिल बंसल इस गर्मी के मौसम में विशेष रूप से सावधान रहने की सलाह देते है। डॉ बंसल का कहना है कि गर्मी में सड़क किनारे कटे फल और गन्ने का जूस पीने से परहेज करना चाहिए। फुटपाथ पर लगे गन्ने का रस और कटे फल स्वास्थ्य को काफी नुकसान हो सकता है। क्योंकि कटे फल और गन्ने के जूस से पर बिक्री करते समय मक्खियां बैठ जाती हैं। इन मक्खियों के पंजों में गंदगी होती है जो कि गन्ने के रस और कटे हुए फल के जरिए पैट के अंदर चली जाती है। इससे टाइफाइड, आन्त्रशोध, उल्टी और दस्त और पीलिया होने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए इस मौसम में सुबह ही लोगों घर से खाना खाकर और पानी की बोतल साथ लेकर चलना चाहिए।

नारियल पानी है अच्छा विकल्प
 गुरू तेग बहादुर अस्पताल के डॉ विनोद बताते है कि गर्मी में नारियल का पानी पीना गन्ने के जूस का अच्छा विकल्प है। नारियल पानी पीने से स्वास्थ्य के साथ हाजमा भी बढिया रहता हैं और शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाता है।

पानी की थैली भी पीने से बचे

शहर में अलग-अलग नामों से कई पाउच कंपनी अपने प्रोडक्ट बेच रही हैं। पाउच पर पैकिंग डेट से 30 दिन में उपयोग के निर्देश लिखे हैं, लेकिन इन पाउच पर पैकिंग दिनांक कहीं भी प्रिंट नहीं है, जिससे इसकी एक्सपायरी का पता नहीं चलता। लेकिन डॉक्टर इसे भी न पीने की सलाह देते हैं। डॉक्टरों का कहना है कि इन पाउचों में पानी कैसे और कहां का है इसकी शुद्धता की जांच नहीं होती, कहीं बोर तो कहीं टैंकर से उपलब्ध पानी पाउच में पैक किया जाता है। कभी-कभी तो पाउचों में से बदबूदार पानी भी निकलता है, जिसे व्यक्ति संक्रमण बीमारी से ग्रस्त हो जाता है।



 यहां बिक रही है खुले आम बीमारी
दिल्ली में कटे हुए फल और खुले गन्ने के जूस पांबदी होने के बाद भी खुलेआम यह धंधा चल रहा है। राजधानी के विभिन्न इलाकों में और प्रमुख भीड़-भाड़ इलाकों में कटे फल और गन्ने के जूस की रहेड़ी आसानी से देखी जा सकती हैं। आनंद विहार बस अड़डा, आनंद विहार रेलवे स्टेशन, लक्ष्मी नगर, शकरपुर, कश्मीरे गेट बस टर्मिनल, त्रिलोकपुरी, कल्याणपुरी, लोकनायक अस्पताल आदि स्थानों पर कटे फल और जूस वालों ने कब्जा कर रखा है।

लाईसेंस की दुकानों पर भी रखें सफाई का ख्याल स्वास्थ्य विशेषज्ञ नगर निगम से लाईसेंस प्राप्त दुकानों से भी जूस पीने के लिए सावधानी बरतने की सलाह देते है। विशेषज्ञों का कहना है कि लाईसेंस प्राप्त दुकानों पर जूस पीते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि वहां के फलों पर मक्खियां तो नहीं बैठी हुई है। अगर वहां मक्खियां बैठी हुई तो जूस पीने परहेज करे।
 

विश्व मलेरिया दिवस...छोटा डंक और बड़ा खतरा



मलेरिया के खिलाफ लड़ाई के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने की बड़ी मात्रा में निवेश की अपील
नई दिल्ली २४ अप्रैल (निहाल सिंह) एक तुच्छ-सा  दिखने वाला जीवाणु का मामूली रूप से काटा जाना किसी की जिंदगी को भीषण खतरे में डाल सकता है। मच्छर जैसे जीवों के काटने से होने वाली मौतों की संख्या चिंताजनक ढंग से बढ़ रही है। अत्यधिक तापमान और अधिक नमी की ऊष्णकटिबंधीय स्थितियों में मनुष्य को गंभीर शारीरिक और मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
हर चार में से तीन व्यक्ति मलेरिया के जोखिम पर
विश्व मलेरिया दिवस के मौके पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मलेरिया के उन्मूलन के लिए सरकारों, कोरपोरेट सेक्टर एवं विकास भागीदारों से ज्Þयादा से ज्Þयादा निवेश करने के लिए अपील करते हुए कहा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के दक्षिण-पूर्वी एशियाई क्षेत्र, जहां दुनिया की एक चौथाई आबादी रहती है, में हर चार में से तीन व्यक्ति मलेरिया के जोखिम पर हैं। हालांकि मलेरिया के मामलों की संख्या जो 2000 में 29 लाख थी, वह 2012 में कम हो कर 20 लाख के आंकड़े पर आ गई है, फिर भी यह बीमारी यहां के लोगों के जीवन के लिए एक बड़ा खतरा बनी हुई है।
रोकथाम और नियंत्रण
एसोचौम के महासचिव डीएस रावत ने कहा कि अब समय आ गया है कि मच्छरों को नियंत्रित करने की पूरी क्षमता का उपयोग किया जाए। वर्ष 1940 के दशक में सिंथेटिक कीटनाशकों का निर्माण बहुत बड़ी उपलब्धि थी और 1940 तथा 50 के दशकों में बड़े पैमाने पर इन कीटनाशक दवाओं के इस्तेमाल से मच्छरजनित बीमारियों पर काबू पाया गया, लेकिन पिछले दो दशकों में रोगाणुवाहक जीव जन्य बीमारियां फिर से उभरी हैं या दुनिया के कई नये हिस्सों में फैल गई हैं।
मलेरिया की रोकथाम और नियंत्रण के मुख्य उपाय
रावत ने कहा कि मच्छरों के डंक से बचने के लिए मच्छरदानियों का प्रयोग, घरों के अंदर स्प्रे, घरों के बाहर स्प्रे, पानी में रसायन डालना, मच्छर भगाने वाले कॉयल्स और वेपोराइजिंग मैट्स का इस्तेमाल, रोगाणुवाहक (वेक्टर) जीवों के बढ़ने पर रोक लगाना,परजीवियों, कीटभक्षियों या अन्य जीवों के इस्तेमाल के जरिए रोगाणुवाहक (वेक्टर) जीवों के बढ़ने पर नियंत्रण,रोगाणुवाहक (वेक्टर) जीवों की उत्पत्ति पर नियंत्रण के उपाय, कूड़ा कचरा प्रबंधन,घरों के डिजाइन में सुधार लाने की जरुरत है।

दक्षिण-पूर्वी एशिया के लिए डब्ल्यूएचओ की क्षेत्रीय निदेशक डॉ़ पूनम खेत्रपाल सिंह कहती हैं कि हमें मलेरिया पर लगातार निगरानी रखनी होगी। रोग के निदान, दवाओं, कीटनाशक लारा उपचारित मच्छरदानियों, अनुसंधान एवं दवा के लिए प्रतिक्रिया और कीटनाशकों के प्रतिरोध के लिए वित्तपोषण को बढ़ाने की आवश्यकता है। हमें समुदायों को सशक्त बनाना होगा कि अपने आप को इससे सुरक्षित रख सकें। मलेरिया के उन्मूलन के लिए बड़े पैमाने पर राजनैतिक सहयोग की भी आवश्यकता है।
एनोफिलिज मच्छरों का प्रतिरोधी क्षमता विकसित करना चिंता का विषय
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान(एम्स) के माइक्रोबायलॉजी विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ विजयानी कहते हैं कि मलेरिया के लिए सबसे बड़ा खतरा यह है कि एनोफिलिजÞ मच्छर, जो मलेरिया परजीवी के वाहक हैं, वे कीटनाशकों के लिए प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर रहें हैं। हमें कीटनाशकों के लिए मच्छरों की प्रतिरोधी क्षमता के प्रसार को जल्द से जल्द रोकना होगा। इसके अलावा, जिन क्षेत्रों से मलेरिया का पूरी तरह से उन्मूलन हो चुका है, उन क्षेत्रों में मलेरिया के पुन: संचरण को रोकना एक बड़ा मुद्दा है, जिसके लिए त्वरित प्रतिक्रिया एवं लगातार निगरानी बनाए रखने की जÞरूरत है।  डॉ विजयानी के मुताबिक नए उपकरणों के विकास के लिए, मलेरिया नियन्त्रण प्रोग्राम में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए अनुसंधान के लिए तथा मौजूदा उपायों के सही इस्तेमाल को सुनिश्चित करने के लिए निवेश की आवश्यकता है। हमें हमारी स्वास्थ्य प्रणालियों को सशक्त बनाना होगा, और सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में मलेरिया उन्मूलन हेतू गतिविधियों में तेजÞी लानी होगी।
बॉक्स
मलेरिया एक घातक बीमारी है जो प्लाज्Þमोडियम परजीवी के कारण होती है। यह परजीवी संक्रमित एनोफिलिजÞ मच्छर के काटने से लोगों में फैलता है, जिसे ‘‘मलेरिया का वाहक’’ कहा जाता है, यह मच्छर आमतौर पर सुर्योदय और सूर्यास्त के बीच के समय में काटता है। मलेरिया की रोकथान और इलाज सम्भव है। मच्छरों से बचने के लिए रात में कीटनाशकों लारा उपचारित मच्छरदानी का इस्तेमाल किया

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