Saturday, September 22, 2012

पिताजी ने दिलाया मुझे एक और जीवन साथी

आज में फिर एक बार खुश हू,, हर बार की तरह मेरे पिताजी ने अपनी खुशियों और चिंताओ का त्याग करके मुझे लेपटाप दिला दिया... सच बताऊ इस मेरे पिताजी के इतने बड़े शौकीन है कि हमें कोई भी शौक की आदत पालने की जरुरत नही है सारे शौक पिताजी  के शौक के बहाने पूरे हो जाते है।

हमारे घर में हमेशा यह डर लगा रहता है कि पिताजी आज कुछ नया खरीद न लाये ... क्योंकि मै एक मध्यमवर्गी परिवार से संबध रखता हू महीने के आखिरी दो हफ्ते आते आते पैसे की कमी महसूस होने लगती है पर पिताजी सारी चीजों को एक तरफ करके हमारी शौक और पढाई को ज्यादा तवज्जों देते है।gud nite
 

 

 

No comments:

Post a Comment

दिल्ली में स्थानीय स्वायत्त शासन का विकास

सन् 1863 से पहले की अवधि का दिल्ली में स्वायत शासन का कोई अभिलिखित इतिहास उपलब्ध नहीं है। लेकिन 1862 में किसी एक प्रकार की नगर पालिका की स्थ...