Wednesday, May 26, 2021

कुछ ऐसा ही था हमारा जमाना

आओं तुम्हें बताऊं खेल पुराना
कुछ ऐसा ही था हमारा जमाना

टूटी हुई चप्पल के पहिए बनाना
पंचर वाली टायर ट्यूब से उसके छल्ले लगाना
दौड़ हमारी थी, लेकिन डंडी वाली गाड़ी का जीत जाना

ईंट का घिस-घिस कर लट्टू बनाना
फिर चीर की सुताई से उसको नचाना
टक्कर मार- मार कर प्रतिद्वंदी का लट्टू हराना

कुछ ऐसा ही था हमारा जमाना
आओं तुम्हें बताऊं खेल पुराना

टायर के साथ हाथ की थाप से दौड़ लगाना
गुड्डा और गुड़िया का ब्याह करवाना 
कबाड़े से गोला-पाक और बर्फ खाना
कुछ ऐसा ही था हमारा जमाना

बत्ती आने पर जोर से एक साथ शौर मचाना
अंधरे में छुपन छिपाई का तो है खेल पुराना
सोने से पहले चिराग को जोर वाली फूंक से बुझाना 
बरसात में कागज की नांव बनाना
फिर चींटे की उस पर सवारी कराना 

सुबह शाम जब जंगल जाते थे
जेब में रखकर आम और ककड़ी लाते थे
अपने खेत में तरबूज होते हुए दूसरे के चुराना
कुछ ऐसा ही था हमारा जमाना
आओं तुम्हें बताऊं खेल पुराना

बिन मौसम भी बाग में फल आते थे
जब हम वहां खेल खेलने जाते थे 
बगिया में वो खटिया पर नजर लगाना
बाबा को परेशान कर भाग जाना

तालाब- नदी में डुबकी लगाकर नहाना
बैल भैंसिया की पूछ कर नदी पार  कर जाना
पपिया घिसकर उसकी पिपनी बजाना
रेडियों पर कुमार सानू का गीत गुनगुनाना 

मामा के आने पर खुशियों से झूम जाना
नानी के लाड के लिए ननसार जाना
साइकिल के लट्टे पर बैठकर बाजार जाना
फिर वहां पर चांट पकौड़ी और जलेबी खाना

साइकिल बड़ी थी लेकिन कैंची वाली चलाकर आएं हौंसले से नहीं
सपील के सहारे गद्दी पर बैठ जाना
गर्मी आते ही नीम पर झूले का डल जाना

आओं तुम्हें बताऊं खेल पुराना
कुछ ऐसा ही था हमारा जमाना

न न निहाल को तुमने क्या पहचाना 
ये तो था उसके बचपन का फसाना
-निहाल सिंह
28.05.2021

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