Monday, May 27, 2013

हीट स्ट्रोक हो सकता है जानलेवा: डॉ. अग्रवाल

हीट स्ट्रोक हो सकता है जानलेवा: डॉ. अग्रवाल
नई दिल्ली। हार्ट केयर फांउडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल के मुताबिक हीट स्ट्रोक का अगर समय रहते डायग्नाज और उपचार नहीं कराया गया तो यह जानलेवा हो सकता है। डॉ. अग्रवाल के मुताबिक इस समय चल रही गर्मी में तापमान 45 डिग्री सेंटीर्गेड को पार कर चुका है जिससे आने वाले दिनों में हीट स्ट्रोक के मामलों में इजाफा हो सकता है। हीट स्ट्रोक इस पर निर्भर करता है कि आप कितनी देर तक खुले आकाश में रहते है। इससे बचने के लोगों को पेय के रूप में नींबू नमक पानी और आम का पना पेय विकल्प के तौर पर लेना चाहिए।
डॉ. अग्रवाल के मुताबिक हीट स्ट्रोक के मरीजों में तेज बुखार, डीहाइड्रेशन और पसीना न निकलने जैसे लक्षण होते हैं। अक्सर ऐसी स्थिति में शरीर का तापमान 106 डिग्री फारेनहाइट से अधिक हो जाता है। व्यक्ति के शरीर का तापमान उसके निकलने वाले पसीने से नियंत्रित रहता है, जिससे गर्मी का अहसास नहीं होता है।लेकिन गर्मी के बढऩे के साथ अगर आपके शरीर से पसीना नहीं निकलता तो इससे गर्मी से जुड़ी समस्याएं होने लगती हैं जैसे कि, गर्मी से लू, तपिश और हीट स्ट्रोक की स्थिति आ जाती है। इससे प्रभावित लोगों को चाहिए कि वे 8 से 10 लीटर तरल पेय लें।
डॉ. अग्रवाल के मुताबिक वृद्व लोगों और उन व्यक्तियों में जो एंटी एलर्जी की दवाएं लेते हैं, उनमें हीट स्ट्रोक आम है। इससे बचने की सलाह देते हुए डॉ. अग्रवाल कहते हैं कि गर्मी के दिनों में हर व्यक्ति को 8 घंटे के अंदर एक बार पेशाब करना चाहिए। अगर आठ घंटे तक पेशाब नहीं होती है तो गंभीर डीहाइड्रेशन हो सकता है। इस मौसम में पीलिया, टायफाइड, गैस्ट्रोएन्टाइटिस और हैजा जैसी बीमारियों से बचाव के लिए हर व्यक्ति को चाहिए कि वह कटे हुए फल व सब्जियों के सेवन से परहेज करे।


गर्मी ने बढ़ा दी आखों की परेशानी, बरते सावधानी

नई दिल्ली। राजधानी सहित पूरे उत्तर भारत में गर्मी का प्रकोप जारी है। गर्मी का मौसम शुरू होते ही हर रोज बढ़ती तीखी धूप आँखों के लिए परेशानी बन रही है। जिससे लोगों को नेत्र संक्रमण और एलर्जी का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में धूल एवं धुएँ से पटे शहरों में आँखों को बचाने के लिए एका-एक डांक्टरों के पास लोगों की संख्या में इजाफा होने लगा है।
नेत्र रोग विशेषज्ञ और आई सेवन अस्पताल के निदेशक डॉ. संजय चौधरी बताते है कि हमारी आंखों और त्वचा के लिए सूरज से निकलने वाली पराबैंगनी विकिरण के दो प्रकार यूवीए और यूवीबी सबसे अधिक हानिकारक होती है। इनके कारण आंखों में एलर्जी होने की संभवना बढ़ जाती है।
डॉ. चौधरी ने बताया कि गर्मियों में आंखों की समस्या में आमतौर पर हवा और वायु प्रदूषण के कारण से पलकों पर पानी आना, आंखों में सूजन आना, आंखों में जलन के साथ खुजली और आंखों में लालिमा नेत्र संक्रमण में वृद्धि गंभीर समस्या बन सकती है। ऐसे में अपनी आंखों को बचाकर रखना जरूरी है। उन्होंने बताया कि आंख में संक्रमण से बचने के लिए ठंडे पानी से लगातार आंख धोने के अलावा आंखों को छूने से बचे। बाहरी गतिविधियों के लिए धूप का चश्मा पहने, दिन भर में पानी का खूब सेवन करें जिससे आँखों में हाइड्रेटेड बना रहता हैं। इसके बावजूद अगर आँखों में कोई समस्या आती है तो विशेषज्ञ से सलाह लेकर एंटीबायोटिक आई ड्रॉप और आँखों के मलहम का प्रयोग करें।



चढ़ते पारे के बीच सुगंधित पुदीना बना रामबाण

नई दिल्ली। चढ़ते पारे और तपती गर्मी के इस मौसम में शीतल पदार्थों की मांग दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। इन्हीं पदार्थों में सबसे अधिक मांग पुदीने की है। इसकी सबसे अच्छी खासियत यह है कि इसकी पहुंच सभी तबकों तक है। साथ ही यह सभी वर्गों की जेबों को सुहाने वाला भी है।
पुदीना के कई फायदे हैं। पुदीना विटामिन ए से भरपूर होने के साथ-साथ बहुत ही गुणकारी एवं शरीर के लिए लाभकारी है। पुदीना का स्‍वाद जितना अच्छा होता है और इसकी सुगंध मिलते ही व्‍यक्ति काफी तरोताजा महसूस करता है। इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी होता है। यह पेट के विकारों में काफी फायदेमंद होता है।
अगर इसका सेवन नियमित रूप से किया जाए तो लू लगने की आशंका खत्म हो जाती है। साथ ही पूदीने की चटनी , शिकंजी, रायता, कुल्फी,छाछ,ठंडाई आदी पदार्थ भी इस झुलसाने वाले मौसम में शीतलता प्रदान कर रहे हैं। कहने को तो बाज़ार में विभिन्न प्रकार की कोल्ड ड्रिंक्स, जूस आदी उपलब्ध है। लेकिन पूदीने की गुणवत्ता को छू पाने में भी ये पदार्थ असफल है। यहां तक की पूदीने की तुलना इन पदार्थों से करना भी बेमानी होगा।


तपतपाती गर्मी से बचना है तो पियें नारियल पानी

नई दिल्‍ली,। इस चिलचिलाती धूप के प्रकोप से बचने के लिए हम न जाने क्या-क्या करते रहते हैं। फिर भी, ये गर्मी है कि पीछा ही नहीं छोड़ती।      
अगर आप इस तपतपाती गर्मी में भी शरीर को चुस्‍त और कूल बनाए रखना चाहते हैं, तो नारियल पानी आपके लिए बेहद फायदेमंद साबित होगा। गर्मियों में नारियल पानी का सेवन स्‍वास्‍थ्‍य के लिए कई तरह से फायदेमंद होता है।
नारियल पानी का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह गर्मियों में चलने वाली गर्म हवाओं से आपको सुरक्षित रखता है। इस पानी को पीकर बाहर निकलने से लू लगने की आशंका बेहद कम हो जाती है। यह शरीर ठंडा रखने के साथ ही तापमान को भी ठीक बनाए रखता है।
नारियल पानी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह शरीर को ठंडा करता है। साथ ही शरीर के तापमान को ठीक बनाए रखता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि नारियल पानी इनर्जी का बेहतर स्रोत है। जो लोग अधिक व्यायाम करते हैं उन्हें व्यायाम के बाद नारियल पानी का सेवन जरूर करना चाहिए। खासकर व्यायाम के बाद तो इसे जरुर पीना चाहिए।
एक बात जो हमें जरूर जान लेनी चाहिए कि नारियल पानी में कैल्शियम, मैग्नीशियम और पोटेशियम काफी होता है, जो खून का संचार संतुलित रखता है। यह एक इलेक्ट्रोलाइट ड्रिंक है, जो बॉडी को तरोजाता रखता है। अगर पाचन सही नहीं है, तो नारियल पानी पीना बेहद फायदेमंद होता है। इसमें एंटी वायरल और एंटी बैक्टीरियल खूबियां भी होती हैं।



बढ़ते पारे ने दिल्लीवालों का मूड बदला

नई दिल्ली। 26 साल के संजीव इन दिनों अजीब समस्या से गुजर रहे हैं। उनका न तो किसी काम में मन लगता है और न ही एकाग्रता बन पाती है। मूड ऐसा कि बात-बात पर किसी से भी लड़ाई झगड़ा करने को तैयार। हालत यह होती है कि डिप्रेशन की वजह से खुद के ही बाल नोचने का मन करता है। दरअसल बढ़ते पारे ने दिल्ली वालों का मूड भी गरम कर दिया है।
मनोवैज्ञानिक इसे मेडिकल टर्म में गर्मी में मूड स्विंग की समस्या बताते हैं। उनका कहना है कि बाहरी वातावरण का सीधा संबंध हमारे मूड से भी होता है। ज्यादा तापमान और आर्द्रता वाले मौसम में कुछ लोगों का मूड तेजी से बदलता है। कभी-कभी यह मनोवैज्ञनिक समस्या बन जाती है और कई अजीबोगरीब लक्षण दिखने लगते हैं। ऐसी समस्याएं लेकर आने वाले मरीजों की संख्या इन दिनों तेजी से बढ़ रही है। जानकार कहते हैं कि यह साफ तौर पर देखा गया है कि सुहाने मौसम की तुलना में गर्मी और उमस वाले मौसम में हमारी भावनाओं और मूड में तेजी से बदलाव होता है। मनोवैज्ञानिक डॉ. समीर कलानी का कहना है कि मौसम का सभी के मूड से एक सीधा संबंध होता है। ज्यादा तापमान में दिमाग में मौजूद हारमोन्स में तेजी से बदलाव होता है। कभी कभी हारमोनल संतुलन बिगड़ जाता है। इससे मानसिक संतुलन पर भी असर पड़ता है। इससे पीड़ित का मनोविज्ञान अजीब व्यवहार करती है। मेडिकल की भाषा में इसे मूड स्विंग कहते हैं।
क्या हैं मुख्य समस्याएं?
इंडियन हार्ट फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ आरएन कालरा कहते हैं कि एकाग्रता नहीं, मूड में भारीपन, डिप्रेशन, आलस -मामूली बात पर भड़क जाना, लड़ाई-झगड़ा भी-दिन भर या रात में भी बेचैनी महसूस करना-थोड़ी देर पहले ही की गई प्लानिंग भूल जाना जैसे आम लक्षण दिखते हैं।
रिलेक्सेशन थैरेपी जरूरी
डॉ कालरा कहते हैं कि यह समस्या उनमें ज्यादा होती है जिसके परिवार का इतिहास अफैमिली हिस्ट्री ऐसी रही हो। वे तापमान के प्रति सेंसिटिव होते हैं। गर्मी में यह समस्या बढ़ जाती है। इसके लिए मेडिसिन थैरेपी,   रिलेक्शेसन थैरेपी और साइकोलॉजिकल थैरेपी जरूरी होती है। हालांकि मेडिसिन अंतिम विकल्प होता है, जब समस्या ज्यादा बढ़ जाती है। फिर भी जानकार कहते हैं कि सुहाने मौसम में मूड लाइट होता है। हालांकि कुछ ऐसे लोग भी हैं जो ज्यादा सर्दी में डिप्रेशन में आ जाते हैं। लेकिन सर्दी में ऐसी परेशानी भारतीय लोगों में कम होती है।



 मौसम एवं जीवन शैली में बदलाव के चलते हर 6 में से 1 दंपत्ति बांझपन की शिकार

नई दिल्ली, । बदलते मौसम एवं जीवन शैली का असर बांझपन पर पड़ा है। महिलाएं जहां पोली-सिस्टिक ओवरियन सिंड्रोम यानी पीसीओएस से पीड़ित हो रही हैं वहीं पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या लगातार गिरती जा रही है।
फोर्टिस-ला फेम अस्पताल के फर्टीलीटी विशेषज्ञ डॉ. ऋशिकेष पाई कहते हैं कि बढ़ती बांझपन की समस्या से प्रकृति का संतुलन खतरे में आ गया है। हर 6 में से एक दंपत्ति बांझपन की समस्या से जूझ रहा है और इन मामलों में 30-40 प्रतिशत बांझपन के मामले महिलाओं से जुड़े हुए होते हैं और 30 से 40 प्रतिशत पुरुषों से संबंधित होते है। कुछ मामलों में महिलाओं और पुरुषों दोनों ही मिलकर कुछ विशेष प्रकार से बांझपन का कारण बनते हैं। ऐसे में गहन जांच और मौजूद बेहतरीन ईलाज के चलते 50 प्रतिशत बांझ युगलों में गर्भधारण करना संभव है। इसके लिए मौजूद विभिन्न तकनीकि सहायता ली जाती हैं।
गंगाराम अस्पताल की आईवीएफ एवं फर्टीलीटी विशेषज्ञ डॉ. आभा मजूमदार कहती हैं कि महिलाएं पोली-सिस्टिक ओवरियन सिंड्रोम यानी पीसीओएस से पीड़ित हो रही हैं। यह एक विशेष तरह की समस्या है जिसमें महिलाओं में हार्मोन का संतुलन बिगड़ जाता है और और उनकी माहवारी में समस्याएं शुरू हो जाती हैं जिससे उन्हें बच्चा पैदा करने में मुश्किल पैदा हो जाती है। उन्होंने पीसीओएस को लेकर अपनी चिंता को जागृत करते हुए जानकारी दी कि यह समस्या भारतीय महिलाओं में सबसे आम तौर पर विद्यमान है।
डॉ मजूमदार कहती हैं कि आज देश में हर 15 में से 1 महिला इस समस्या से जूझ रही है। इस समसया के लक्ष्ण युवा अवस्था में शुरू होते हैं और सही ईलाज से इन लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है और इसके बड़ी समस्या बनने से बचा जा सकता है।
क्या हैं पीसीओएस के लक्षण?
पीसीओएस के लक्षणों को समझाते हुए डॉ. नंदिता पी पालशेटकर ने कहा  कि महिलाओं जिनको लगतार माहवारी की समस्या रहती है, माहवारी नहीं होती या फिर असमान्य रक्तस्राव होता है उनमें पीसीओएस की समस्या होने की अधिक आशंका रहती है। ऐसे में चेहरे, छाती, पेट, पीठ, अंगूठे पर अधिक बाल आना और कील मुहांसे, तैलीय त्वचा और डैंड्रफ पीसीओएस से जुड़े हुए कुछ प्रमुख लक्षण हैं।



दिल्ली में वॉटर किलर का कहर, ओपीडी में 40 फीसदी मामले गंदे पानी से होने वाली बीमारी के

नई दिल्ली, । दिल्ली में गंदा पानी बीमारियों की बड़ी वजह के रूप में सामने आया है। अस्पतालों की ओपीडी में आने वाले करीब 40 फीसदी मामले गंदे पानी से होने वाली बीमारियों के हैं। पिछले कुछ सालों में ये मामले तेजी से बढ़े हैं। इससे साफ है कि दिल्ली वालों को पीने का साफ पानी नहीं मिल रहा। एक तरफ, जल बोर्ड का कहना है कि पानी की शुद्धता तय मानक के अनुरूप है, लेकिन घर में पानी की जांच कराओ तो कभी पानी शुद्ध नहीं मिलता।
पानी में हैं मौजूद कई हानिकारक रसायन
पानी पर दिल्ली में हुई कई अध्ययन बता चुकी हैं कि पानी में हानिकारक धातु हैं। अलग-अलग इलाकों में पानी में क्लोराइड, आर्सेनिक, कैडेमियम, एल्यूमिनियम, निकिल, बेरियम जैसे तत्व मिले हैं। इससे हैपेटाइटिस, गैस्ट्रो, टायफाइड, दिल के रोग, त्वचा रोग, कैंसर, दांतों की बीमारी और त्वचा रोग बढ़ रहे हैं। लंबे समय तक इस्तेमाल करने से अंगों की विफलता तक का डर बना रहता है। डॉक्टरों का कहना है कि ओपीडी में आने वाले करीब 40 फीसदी मामले प्रदूषित पानी से होने वाली बीमारियों के हैं। गर्मियों में समस्या और बढ़ जाती है।
दूषित पानी पीने से अंगों की विफलता के अलावा कैंसर तक के खतरे
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के इंटरनल मेसिसिन के डॉ रनदीप गुलेरिया के अनुसार हर साल जल जनित बीमारियों के मामले बढ़ते जा रहे हैं। गर्मियों में हैपेटाइटिस, गैस्ट्रो, कॉलरा, जॉंडिस के मामले ज्यादा आते हैं। वहीं मेटाबोलिक डिजीज विशेषज्ञ डॉ. अनूप मिश्रा का कहना है कि लंबे समय तक ऐसा पानी पीने से ऑर्गन फेलियर या कैंसर तक की समस्या हो सकती है। गुर्दे की सास्या भी देखी गई है।
दूषित पानी से नहाने से भी खतरा
पीने से ही नहीं, दूषित पानी के नहाने में इस्तेमाल करने से भी त्वचा संबंधी रोग हो सकते हैं। विकारस्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. दिनेश कंसल का कहना है कि गर्भधारण के दौरान प्रदूषित पानी पीने से बच्चे में कई तरह की विकृतियां हो सकती हैं।


दर्दनिवारक दवाएं दे सकती है दिल का दर्द

नई दिल्ली, । दर्द से राहत दिलाने वाली पेनकिलर आपके दिल को गहरा दर्द दे सकती हैं। वैज्ञानिक अध्ययनों के मुताबिक दर्द निवारक दवाइयों का सेवन करने वालों में 30 प्रतिशत लोग हृदयाघात से पीड़ित होते हैं। ऐसे में पहली बार दिल के दौरा पड़ने के एक साल के भीतर दूसरी बार दिल के दौरे पड़ने पर मौत होने का भी खतरा होता है।
अक्सर चिकित्सक पहली बार दिल के दौरे से उभर चुके लोगों को दर्द निवारक दवाइयां सेवन करने की सलाह देते हैं। जबकि एक ताजा अध्ययन में पाया गया है कि ऐसी दवाइयों के सेवन से उनमें दिल का दूसरा दौरा पड़ने और जल्दी मृत्यु होने की संभावना बढ जाती है।
कालरा अस्पताल के निदेशक और हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. आर.एन. कालरा बताते हैं कि कई दर्द निवारक दवाइयों के लंबे समय तक इस्तेमाल करने से लीवर और किडनी के खराब होने का खतरा रहता है। साथ ही दिल के दौरे पड़ने तथा ह्रदय संबंधित अन्य समस्याएं भी इंसान हो घेर लेती हैं क्योंकि यह दवाइयां रक्त का थक्का बनाकर दिल के दौरे या स्ट्रोक के खतरे को बढ़ाती है।
इतना ही नहीं डॉ. कालरा ने ब्रिटिश मेडिकल जर्नल की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि इन दवाओं के सेवन से दिल की धड़कन के अनियमित होने का खतरा 40 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। ऐसे में कोई भी दर्दनिवारक दवा बिना डॉक्टर की सलाह के न ले।


सिलिएक से निपटने में जागरुकता निभाएगी अहम कदम

नई दिल्ली। अगर आपको लगातार डायारिया की शिकायत हो रही है और आपको लग रहा है  आपके शरीर का विकास पूर्ण रुप से नही हो पा रहा है साथ ही हडड़्डियों में कमजोरी की शिकायत है तो आपको अब सावधान होने की जरुरत है । क्योंकि इसी तरह के लक्षण गेहू या गेंहू युक्त प्रदार्थ का सेवन करने से होने वाले सीलिएक नामक रोग के है।
सिलीएक यानि वह रोग जो अनुवांशिक रोग मनुष्य़ को जन्म से ही होता है। यह एक विचित्र तरह का रोग है जिसे विशेषज्ञो अपनी भाषा में एक एलर्जी का नाम देते है । सीलिएक एलर्जी ग्लूटेन नामक प्रोटीन के सेवन करने से होता है। यह ग्लूटेन नामक प्रोटीन ज्यादातर गेंहू व जौं में पाया जाता है। यह रोग समान्यत: स्त्री व पुरुष दोनो को होने की संभावना होती है। साथ ही गेंहू के आलाव जिन पदार्थों में ग्लूटोन गुप्तरुप से पाया जाता है उनका सेवन भी रोगी के लिए उचित नही है । जैसे फास्टफूड, साँस, आइसक्रीम, कुल्फी, कुछ टानिक आदि में अलग –अलग मात्रा में पाया जाता है। इस रोग की जानकारी न होने के कारण भारत की कुल आबादी के एक प्रतिशत लोग इसकी चपेट में आ चुके है। अगर दिल्ली एनसीआर की बात की जाए तो इस रोग ने अभी तक डेढ़ लाख लोगों को जकड़ लिया है।
विशेषज्ञों की राय व उपाय
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बिमारी के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए आज यानि 11 मई को यह दिवस मनाने की घोषणा की है।। सीलिएक नामक रोग की जानकारी देते हुए दिल्ली मेडिकल ऐसोसिएशन के सचिन डॉ.के.के कोहली ने बताया कि सीलीएक एक गंभीर बिमारी है जिसका परहेज अगर निरंतर किया जाए तो इस बिमारी से होने वाले घातक परिणामों से आसानी से बचा जा सकता है। यही नही इस बिमारी का केवल एक ही इलाज है कि रोगी को गेंहू व जौं का सेवन करने से परहेज करना होगा । सीलिएक सपोर्ट संस्था के अध्यक्ष ड़ॉ. एस. के मित्तल ने कहा कि लोगों को इस रोग से घबराने की जरुरत नही है निरंतर इसका परहेज करके इस रोग को आसानी से मात दी जा सकती है। ग्लूटोन नामक प्रर्दार्थ का सेवन कतई न करे इसके लिए भोजन के रुप में दाल चावल, फल, मक्के की रोटी, आलू इत्यदि सब्जियों व दूध काफी मात्रा में खाए जा सकते है। साथ ही ध्यान रहे कि इस रोग में थोड़ी सी मात्रा में भी ग्लूटोन युक्त पदार्थ खाना भी घातक रहता है। जिससे पेट में केंसर का भी खतरा रहता है।
सीलिएक सपोर्ट संस्था और डीएमए करेगा लोगों को जागरुक
दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के सीलिएक रोगियों को उत्साहवर्धन करते हुए घोषणा कि सीलीएक सपोर्ट संस्था व डीएमए के संयुक्त तत्वाधान मै देश भर के डाक्टरों व जनता को जागरुक करने का काम करेगी।


स्वास्थ्य मंत्रालय रखेगा अंग प्रात्यारोपण की जरूरत वाले मरीजों की खबर

नई दिल्ली,। देश में कितने मरीजों को अंग प्रत्यारोपण की जरूरत है और कितने मरीज कहां भर्ती है इसका पूरा ब्यौरा रखने के लिए केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रायल ने नर्ई पहल की हैं। इस पहल के अंतर्गत मंत्रालय ने  ‘नेशनल आर्गन ट्रांसप्रान्टलेशन’ नाम की एक स्वात्तय संस्था बनाने का फैसला लिया है।
नवगठित इस संस्था के चार सेन्टर देश के चार हिस्सों में बनाए जाएंगे जो आपस में जानकारी सांझा करेंगे। जिसमें उत्तर भारत के लिए दिल्ली, दक्षिण भारत के लिए चैन्नई, पूर्वी भारत के लिए कलकत्ता व पश्चिम के लिए महाराष्ट में सेन्टर खोले जाएगें।
केन्द्रीय स्वास्थ्य निदेशालय के निदेशक डॉ. जगदीश प्रसाद ने जानकारी दी कि इस संस्था के निर्माण से देशभर में अंगदान के लिए लोगों को भटकना नही पड़ेगा। एनआईसी द्वारा तैयार किए गए एक खास तरह के साफ्टवेयर की मदद से अंगदान करने वालो का पूरा विवरण सीधे केन्द्रीय स्वास्थ्य निदेशालय के पास जमा होगा। ड़ा प्रसाद के अनुसार इस संस्था के निर्माण के बाद अंगदान के प्रति लोगों में जागरुकता आएगी, जिससे ज्यादा से ज्यादा अंगदान होने का अनुमान है।



एंटी-कॉलीनर्जिक्स दवाओं से प्रयोग से प्रभावित होती है बुजुर्गों की दिनचर्या

नई दिल्ली, । आम तौर पर दी जाने वाली एंटी-कॉलीनर्जिक्स दवाएं बूढ़े लोगों में उनके रोजमर्रा के कामकाज की गति में धीमापन ला देती हैं। इससे उनके दिनभर की दिनचर्या  बिगड़ जाती है और उन्हें खासी दिक्कत होती है। हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने बताया कि वेक फारेस्ट यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन की दो रिपोर्टों में पाया गया है कि एंटी कॉलीनर्जिक ड्रग्स यूज्ड टू ट्रेट एसिड री लक्स, पार्किंसन डिसीज और यूरीनरी इनकांटीनेंस के प्रयोग से वृद्वों में उनके सोचने की क्षमता तेजी से कम हो सकती है।
एंटी कॉलीनर्जिक दवाएं एसीटाइकोलाइन (एक रसायन होता है जो दिमाग की नर्व सेल्स के बीच का काम करता है, इनके जुड़ने से इसमें रुकावट आ जाती है) के काम को रोक देती हैं। बुढ़ापे में जो एंटी कॉलीनर्जिक्स लेते हैं वे कहीं ज्यादा धीमी गति से टहलते हैं साथ ही अन्य रोजमर्रा की जिन्दगी में मदद की जरूरत होती है। ये परिणाम उन वृद्वा अवस्था वाले  उन लोगों में भी सही पाये गए जिनकी याददाश्त और सोचने की क्षमता सामान्य थी। डा. अग्रवाल के अनुसार बुढ़ापे में जो काम चलाऊ एंटी कॉलीनर्जिक दवाएं लेते हैं, यानी दो या इससे ज्यादा हल्की एंटी कॉलीजर्निक दवा खाते हैं तो उनमें भी तीन-चार साल बाद ऐसी ही कार्यक्षमता हो जाती है
आम एंटीकॉलीनर्जिक दवाओं में रक्तचाप की दवा नाइफीडिपाइन, द स्टमक एंटैसिड रैनीटिडाइन और इनकॉन्टीनेंस मेडिकेशन टाल्टीरोडाइन शामिल हैं। कॉलीनेस्टीरेज इनहिबटर्स एक पारिवारिक दवा है जिसको डीमेंशिया के उपचार में इस्तेमाल करते हैं। इसके अलवा अन्य दवाओं जिनसे एसीटिलकोलाइन बढता में शामिल हैं- डॉनीपेजिल, गैलेंटामाइन, रीवस्टिग्माइन और टैक्राइन। करीब 10 फीसदी मरीज टॉल्टीरोडाइन और डॉजीपेजिल एक साथ ले रहे होते हैं। दोनों दवाएं फार्मा के तर्क से एक दूसरे के उल्टा है जिसकी वजह से डीमेंशिया और इनकॉन्टीनेंस के उपचार पर असर होता है इसके साथ ही इससे एक या दोनों दवाओं के असर में भी कमी आती है।


प्रोटेस्ट कैंसर का सफल इलाज

नई दिल्ली, । राजधानी के आर.जी.स्टोन अस्पताल में पिछले दिनों एक मरीज के प्रोस्टेट कैंसर का सफल इलाज किया गया। इलाज के दौरान नई और आधुनिक होलेप तकनीक का इस्तेमाल किया गया।
गौरतलब है कि कई महीने से गौरांगा सुंदर पात्रा प्रोस्टेट ग्लैंड की समस्या के कारण कई अस्पतालों में इलाज के लिए गए। सभी जगह उन्हें ओपन सर्जरी की सलाह दी गई। लेकिन वे इसके लिए तैयार नहीं थे। लेकिन बिना इलाज उनकी स्थिति इतनी खराब हो गई थी कि कैथेटर-फौले के माध्यम से उनके शरीर से मूत्र निकाला जाता था। परेशान हो उनके परिजन उन्हें लेकर आर.जी.स्टोन अस्पताल गए। जहां डॉक्टरों ने उन्हें तुरंत ऑपरेशन की सलाह दी। जिसके लिए उन्हें तैयार किया गया और होलेप तकनीक द्वारा उनका सफल आपॅरेशन किया।
अस्पताल के प्रबंध निदेशक डॉ. भीम सेन बंसल ने बताया कि मरीज की स्थिति बहुत ही खराब थी। उसका प्रोस्टेट 222 ग्राम का हो गया था। उनकी स्थिति को देखते हुए ऑपरेशन के लिए 100 वॉट होलेप का प्रयोग किया गया, जो कि विश्व की सबसे आधुनिक और उत्तम तकनीक है। मरीज सर्जरी के बाद पूरी तरह से स्वस्थ है। डॉ. बंसल ने बताया कि बढी हुई प्रोस्टेट ग्रंथी के इलाज के लिए होलेप को स्वर्णिम मानक माना गया है। यह अत्यंत सुरक्षित है। हृदय रोगियों के लिए तो यह बहुत ही 


मसूढों में कीडे होने पर समय से पहले डिलीवरी संभव, महिलाओं के मसूढों में जितने बैक्टेरिया उतने जल्द डिलीवरी के लक्षण

नई दिल्ली। सही तरीके से दांतों की देखभाल करके हार्ट अटैक, हार्ट ब्लॉकेज, अस्थमा और सीओपीडी जैसी खतरनाक बिमारयों से बचा जा सकता है। उन्होंने बताया कि यदि गर्भवती महिलाओं के मसूढों की समस्या का उपचार करके समय से पहले होने वाले बच्चे के जन्म पर रोक लगाई जा सकती है। हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के के अग्रवाल ने बताया कि मसूढों में कीडे होने का सबंध कई तरह की बीमारियों से रहा है।
इसके लिए एक तय समय के मुताबिक दांतों का निरंतर उपचार करवाते रहना चाहिए। जर्नल ऑफ पीरियोडोंटोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन का हवाला देते हुए डा. अग्रवाल ने कहा कि अध्ययन में दिखाया गया है कि यदि गर्भवती महिलाओं में मसूढों की समस्या का उपचार सही तरीके से किया जाये तो इससे समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं पर रोक लगाई जा सकती है।
अध्ययन में दिखाया गया है कि जिन गर्भवती महिलाओं ने दांतों की बीमारी का उपचार करवाया उनमें समय से पहले शिशु जनने के मामले सामने नहीं आए। जबकि जिन महिलाओं ने इसका इलाज नहीं करवाया उनमें समय से पहले शिशु को जन्म देने का खतरा करीब 90 गुना पाया गया। डा. अग्रवाल ने बताया कि एक अन्य टीम के अध्ययन में पाया गया कि जिन महिलाओं की मसूढों में गर्भ या इसके बाद जितने ज्यादा बैक्टीरिया पाये गए, उनमें उतना ही ज्यादा समय से पहले बच्चे को जन्म देने का खतरा पाया गया।



थैलासीमिया के सबसे ज्यादा मामले डीडीयू अस्पताल में, जानकारी के अभाव में फैल रहा रोग

नई दिल्ली। राजधानी के सरकारी अस्पतालों में थैलासीमिया के सर्वाधिक मरीज दीनदयाल उपाध्याय (डीडीयू) अस्पताल में आ रहे हैं। जिन मरीजों में थैलासीमिया की पुष्टि हो रही है उनमें सबसे अधिक संख्या गर्भवती महिलाओं की है। दिल्ली सरकार के तीन अस्पतालों में अभी थैलासीमिया जांच की सुविधा उपलब्ध है। इनमें जीटीबी अस्पताल, डीडीयू व एलएनजेपी अस्पताल शामिल हैं। पिछले वर्ष एलएनजीपी में 35 व जीटीबी में 133 मामले थैलासीमिया के सामने आए, वहीं डीडीयू में थैलासीमिया के पिछले वर्ष 217 मामले आए।
थैलासीमिया विभाग के डॉ. दिनकर बताते हैं कि डीडीयू में थैलासीमिया के कुल मामलों में 17 फीसद संख्या गर्भवती महिलाओं की है। सुकून की बात यह है कि पिछले वर्ष के आंकड़ों के आधार पर ज्यादातर मरीज मेजर श्रेणी के सामने नहीं आ रहे हैं। फिलहाल, डीडीयू में 224 मरीज मेजर श्रेणी के पंजीकृत हैं। इन मरीजों को हर 21 वें दिन पर अस्पताल में खून चढ़ाया जाता है।
इस बीमारी के तेजी से फैलते प्रभाव के बारे डॉक्टर ने बताया कि यह जीन की गड़बड़ी से होने वाली बीमारी है। इसमें मरीज के रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा काफी कम हो जाती है। इससे प्रभावित व्यक्ति में स्वच्छ रक्त कणिकाओं का निर्माण पर्याप्त मात्रा में नहीं हो पाता। इससे प्रभावित व्यक्ति को जीवनपर्यत बाहरी रक्त की जरूरत होती है। करीब 17 फीसद भारतीय इस बीमारी से पीड़ित हैं। डॉ. दिनकर बताते हैं कि अफगानिस्तान व पाकिस्तान से आए लोगों में इस बीमारी के लक्षण अधिक पाए जाते हैं। भारत में यह बीमारी पंजाब व हरियाणा जैसे प्रदेशों में अधिक पाई जाती है। इस बीमारी का पूर्ण उपचार अस्थि मज्जा का प्रत्यारोपण है, लेकिन यह विधि काफी महंगी है।
थैलासीमिया से बचाव के बारे डॉ. दिनकर का कहना है कि जीन की गड़बड़ी से होने वाली बीमारी के संबंध में लोगों में जितनी जागरूकता होनी चाहिए, उसका अभाव है। थैलासीमिया से ग्रस्त युवक की शादी इस बीमारी से पीड़ित युवती से हो जाए तो बच्चे में शत प्रतिशत इस बीमारी से ग्रस्त होने की संभावना रहती है। ऐसे में प्रभावित युवक के लिए शादी से पूर्व डॉक्टरी सलाह जरूरी है।

No comments:

Post a Comment

दिल्ली में स्थानीय स्वायत्त शासन का विकास

सन् 1863 से पहले की अवधि का दिल्ली में स्वायत शासन का कोई अभिलिखित इतिहास उपलब्ध नहीं है। लेकिन 1862 में किसी एक प्रकार की नगर पालिका की स्थ...